बुधवार, 28 सितंबर 2016

भारत ने 10 मिनट में पाकिस्तान को धोया

 भारत  की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सोमवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा के अंतरराष्ट्रीय मंच से मात्र 10 मिनट में पाकिस्तान को दुनिया के सामने एक बार फिर बेनकाब कर दिया। अपने उद्बोधन में श्रीमती स्वराज ने बड़ी स्पष्टता के साथ पाकिस्तान और भारत में अंतर स्थापित कर दिया। उनके भाषण की खासियत रही कि उन्होंने पहले भारत के वर्तमान और भविष्य को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। सबको बताया कि भारत किस प्रकार विश्व कल्याण के मार्ग पर अग्रसर है। उसके बाद उन्होंने बताया कि विश्व शांति में एक देश (पाकिस्तान) किस प्रकार खतरनाक सिद्ध हो रहा है। यह देश आतंक ही बोता है, आतंक ही उगाता है और आतंक ही बेचता है। आतंक को पालना इसका शौक हो गया है। भारत के साथ ही पेरिस, न्यूयोर्क, ढाका, इंस्ताबुल, ब्रूसेल और काबुल में हुए आतंकी धमाकों जिक्र करके विदेश मंत्री ने दुनिया को बताने की कोशिश की कि पाकिस्तान सिर्फ भारत के लिए ही खतरा नहीं है, बल्कि पाकिस्तान में पैदा हो रहा आतंकवाद दुनिया को बर्बाद कर देगा।

सामने आया कैराना का सच

 अब  यह साबित हो चुका है कि उत्तरप्रदेश में कानून व्यवस्था संभालने में समाजवादी पार्टी की सरकार और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव असफल रहे हैं। लगभग साढ़े तीन महीने पहले उत्तर प्रदेश के कैराना में हिंदू समुदाय की पलायन की खबरें सामने आई थीं। यह पलायन चर्चा के केंद्र में लंबे समय तक रहा। इस गंभीर राष्ट्रीय मुद्दे पर तथाकथित सेकुलर जमात ने न केवल आँखें बंद कर ली थीं, बल्कि हिंदू पलायन को पूरी तरह खारिज कर दिया था। हिंदुओं के पलायन को खारिज करने के लिए इस सेकुलर जमात ने एक से बढ़कर एक कुतर्क गढ़े थे। यहाँ तक की कैराना जाकर फर्जी तथ्यों या अपवाद के आधार पर यह साबित करने का पूरा प्रयास किया कि कैराना से पलायन स्वाभाविक है। यह पलायन रोजगार और बेहतर जीवन के लिए हुआ है। मीडिया के एक धड़े ने भी इस जमात को भरपूर सहयोग दिया था। लेकिन, मानवाधिकार आयोग ने इन ढ़ोंगी सेकुलरों का मुँह नोंच लिया है। इनके झूठ को उजागर कर दिया है। मानवाधिकार आयोग ने अपनी जाँच में पाया है कि हिंदू परिवारों का पलायन सत्य है, कोई झूठ नहीं। पलायन की मुख्य वजह भी मुस्लिम समाज के दबंगों की गुंडागर्दी है। 

रविवार, 25 सितंबर 2016

राजनीति में संस्कृति के दूत थे दीनदयाल उपाध्याय

 एकात्म  मानवदर्शन के द्रष्टा पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 100वीं जयंती 25 सितंबर को है। चूँकि दीनदयाल उपाध्याय भाजपा के राजनीतिक-वैचारिक अधिष्ठाता हैं। इसलिए भाजपा के लिए यह तारीख बहुत महत्त्वपूर्ण है। उनके विचारों और उनके दर्शन को जन सामान्य तक पहुँचाने के लिए भाजपा ने इस बार खास तैयारी की है। दीनदयाल उपाध्याय लगभग 15 वर्ष जनसंघ के महासचिव रहे। वर्ष 1967 में उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष भी चुना गया। चूँकि उन्हें केरल के कालीकट (कोझीकोड) में राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया था। इसलिए दीनदयाल जन्म शताब्दी समारोह के अवसर पर 25 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केरल के कोझीकोड से विशेष उद्बोधन देंगे। देशभर में बूथ स्तर पर इस भाषण के सीधे प्रसारण के लिए भाजपा तैयारी कर रही है। प्रधानमंत्री का यह भाषण भाजपा और उसकी विचारधारा से जुड़े लोगों के बीच ही नहीं, वरन कांग्रेस और वामपंथी दलों के बीच भी चर्चा का विषय बनने वाला है। क्योंकि, अब तक कांग्रेस-वाम गठजोड़ दीनदयाल उपाध्याय जैसे महापुरुष की अनदेखी ही करता आया है। वर्तमान सरकार में महापुरुषों के साथ होने वाली भेदभाव की यह परंपरा खत्म होती दिखाई दे रही है। भारतीय राजनीति के 70 साल के इतिहास में यह पहली बार है जब महात्मा गांधी, सरदार पटेल, डॉ. भीमराव आंबेडकर, सुभाषचंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरू के साथ-साथ पंडित दीनदयाल उपाध्याय को भी समान आदर दिया जा रहा है। यह भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती है कि जिस भाजपा के साथ राजनीतिक छूआछूत का व्यवहार किया गया, उसका नेतृत्व अपने ही पितृपुरुष को सबसे आखिर में याद कर रहा है।

मंगलवार, 20 सितंबर 2016

शहीदों के परिजनों की सुनो सरकार

 उड़ी  हमले से देश गमगीन है। देशभर में शहीद जवानों को श्रद्धासुमन अर्पित किए जा रहे हैं। शहीद जवान जिस गाँव/शहर/राज्य के बेटे थे, वहाँ के सभी नागरिक बंधु इस दु:ख की घड़ी में उनके परिवारों के साथ खड़े हैं। इस मुसीबत की घड़ी में परिवार के परिवार बिलख रहे हैं। शहीदों की विधवाएं, उनके बच्चे, माता-पिता, बहन-भाई सब एक ही सवाल पूछ रहे हैं कि हमारे सोते हुए सैनिकों पर हमला करने वाले कायर पाकिस्तान को जवाब कब और कैसे दिया जाएगा? यह सवाल सिर्फ शहीदों के परिजन ही नहीं पूछ रहे, बल्कि यह प्रश्न आम नागरिकों का भी है। शहीद नायक एसके विद्यार्थी की बेटी ने कहा है कि सुरक्षा बलों पर जिन लोगों ने हमला किया है, उन्हें माकूल जवाब दिया जाना चाहिए। वहीं, शहीद अशोक की पत्नी अपने पति की मौत के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराते हुए वह कहती हैं कि पाकिस्तान तो कुत्ता है, उसके बारे में इससे ज्यादा क्या कहूं। शहीद जी. दलाई के पिता ने भी हमले के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की माँग की है। जबकि शहीद जवान नायमन कुजूर की पत्नी वीणा अपने पति की मौत का बदला चाहती है। वीणा ने कहा है कि ऐसा लग रहा है कि मैं खुद जाऊं और आतंकियों को गोली मार दूं। वह चाहती है कि सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए ताकि भविष्य में कोई भी ऐसा कृत्य करने का साहस नहीं जुटा सके।

सोमवार, 19 सितंबर 2016

प्रहार हो

 भारत  माँ के 21 लाल, जो माँ की सेवा में बलिदान हो गए, उन्हें प्रणाम। विनम्र श्रद्धांजलि। भारत सरकार से आग्रह, साहब कुछ कीजिए इस तरह की घटनाएँ भारतीय जनमानस को तकलीफ दे रही हैं। आखिर कब तक हम अपने जवानों को 'राक्षसों' का शिकार होते रहने देंगे? जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में सेना के जवानों पर आतंकी हमला हमारे लिए खुली चुनौती है। हमारे खिलाफ जंग का सीधा ऐलान। क्या हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे? हम जानते हैं कि पिछले दो साल में सेना के हाथ खोले गए हैं। सेना आतंकियों का मुंहतोड़ जवाब दे रही है। अनेक आतंकवादी हमलों को नाकाम किया गया है। इसलिए आतंकवादी संगठन बौखलाकर सीधे सुरक्षा जवानों को निशाना बना रहे हैं। लेकिन, यह भी सच है कि हम अब भी रक्षात्मक नीति अपना रहे हैं। इस नीति में बदलाव जरूरी है। आपको चुना भी बदलाव के लिए है। प्रतिकार करना होगा। 21 जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। सरकार को आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का अपना संकल्प न केवल दोहराना होगा, बल्कि उसे धरातल पर उतारना होगा। बहुत बर्दाश्त हुआ। अब आतंकवाद और उसके पोषकों पर खुलकर 'प्रहार हो'।

शनिवार, 17 सितंबर 2016

राष्ट्रवादी विचार से भयभीत कम्युनिस्ट पार्टी

 केरल  में कम्युनिस्ट पार्टी खुलकर असहिष्णुता दिखा रही है। लेकिन, असहिष्णुता की मुहिम चलाने वाले झंडाबरदार कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। क्या उन्हें यह असहिष्णुता प्रिय है? यह तथ्य सभी के ध्यान में है कि कम्युनिस्ट विचारधारा भयंकर असहिष्णु है। यह दूसरी विचारधाराओं को स्वीकार नहीं करती है, अपितु अपनी पूरी ताकत से उन्हें कुचलने का प्रयास करती है। दुनियाभर में इसके अनेक उदाहरण हैं। भारत में केरल की स्थितियाँ भी इसकी गवाह हैं। कम्युनिस्ट विचारधारा के लाल आतंक से कौन बेखबर है? केरल को वामपंथ का गढ़ कहा जाता है। वर्तमान में यहाँ कम्युनिस्ट विचार की सरकार भी है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी सरकार का राजनीतिक संरक्षण प्राप्त कर एक तरफ मार्क्सवादी गुंडे राष्ट्रवादी विचारधारा को मानने वाले लोगों की हत्याएँ कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार स्वयं भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को दबाने के लिए सत्ता की ताकत का दुरुपयोग कर रही है। माकपा सरकार ने मंदिरों और सार्वजनिक स्थलों पर संघ की शाखा को प्रतिबंधित और मंदिरों की सम्पत्ति एवं प्रबंधन को अपने नियंत्रण में लेने की तैयारी की है। सरकार का यह निर्णय अपनी विरोधी विचारधारा के प्रति घोर असहिष्णुता का परिचायक है। यह लोकतंत्र और संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का भी हनन है।

मंगलवार, 13 सितंबर 2016

सोमनाथ मंदिर को सोने से सजाकर अपनी चमक बढ़ा रहे हैं नरेन्द्र मोदी

 हिंदुओं  की आस्था के प्रमुख मानबिंदु सोमनाथ मंदिर को स्वर्ण से सुसज्जित किया जा रहा है। अब तक 105 किलो सोने से मंदिर के अंदरूनी हिस्से और शिखर को सजाया जा चुका है। यह सोना एक भक्त ने दान में दिया है। सरकार ने इस काम में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं। दरअसल, सरकार इस दीपावली तक सोमनाथ मंदिर को सोने से जगमग कर देना चाहती है। ध्यान देने वाली बात यह है कि सोमनाथ को स्वर्णमयी करने के इस महत्त्वपूर्ण कार्य पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विशेष नजर है। बीते दिनों दिल्ली में प्रधानमंत्री निवास पर नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट की बैठक हुई है। मंदिर को भव्यता प्रधान करने की इस परियोजना में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दिलचस्पी से महत्त्वपूर्ण संकेत समाज में जा रहे हैं। एक, भव्य मंदिर की सौगात देकर गुजरात के लोगों को भरोसा दिलाना चाहते हैं कि गुजरात अब भी उनकी प्राथमिकताओं में है। दो, उन्हें हिंदू हितों की चिंता है। तीन, हिंदुओं के आस्था स्थलों को प्रतिष्ठा दिलाने के अपने संकल्प पर भारतीय जनता पार्टी कायम है। इसका एक संदेश यह भी हो सकता है कि भविष्य में अवसर आने पर राममंदिर का निर्माण भी इसी भव्यता के साथ किया जाएगा। यह काम कोई और नहीं कर सकता। इसका सबूत यह है कि पिछले वर्षों में सोमनाथ मंदिर को भव्य रूप प्रदान करने की पहल किसी ने नहीं की। यदि लौहपुरुष सरदार पटेल न होते तब यह भी संभव था कि सोमनाथ मंदिर का निर्माण ही नहीं होता, क्योंकि सेकुलरवाद किसी भी सूरत में मंदिर निर्माण की इजाजत देने के लिए तैयार नहीं था।

सोमवार, 12 सितंबर 2016

अब सुशासन बाबू नहीं रहे नीतीश कुमार

 बिहार  के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कल तक 'सुशासन बाबू' के तौर पर पहचाने जाते थे, लेकिन अब उनकी यह छवि पीछे छूटने लगी है। बिहार में अब सुशासन नहीं बल्कि अपराध की बहार है। शहाबुद्दीन की वापसी ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि बिहार में अपराध पर लगाम लगाने में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नाकामयाब साबित हो रहे हैं। बिहार सरकार में शामिल राजद के विधायकों/मंत्रियों ने जिस तरह उसका स्वागत किया है और फूल बरसाए हैं, उससे भी जाहिर होता है कि भाजपा विरोध की राजनीति का हिस्सा बनकर नीतीश कुमार गलत जगह फंस गए हैं। बिहार सरकार के पिछले एक-डेढ़ साल के कार्यकाल से साबित होता है कि नीतीश कुमार 'सुशासन बाबू' भारतीय जनता पार्टी के कारण बन पाए थे। जदयू-भाजपा गठबंधन की सरकार के वक्त नीतीश कुमार के सुशासन को भाजपा का समर्थन था। जदयू और भाजपा दोनों का मुख्य एजेंडा विकास था। यानी सुशासन की प्रमुख हिस्सेदार भाजपा थी। लेकिन, इस बार नीतीश कुमार अपनी महत्वाकांक्षाओं (स्वयं को तीसरे मोर्चे का नेता प्रस्तुत कर प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब) के कारण भाजपा विरोध की राजनीति में शामिल हुए और भाजपा से रिश्ता तोड़कर राजद एवं कांग्रेस के साथ महागठबंधन का हिस्सा बन गए। चुनाव परिणाम महागठबंधन के पक्ष में आया, जिसमें लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद ने सबसे ज्यादा सीटें जीतीं। इस परिणाम से ही तय हो गया था कि नीतीश के लिए मुख्यमंत्री का ताज काँटों भरा रहेगा, जो बार-बार उन्हें पीड़ा देगा। संभव है कि यह गठबंधन पाँच साल पूरे न कर पाए। जदयू के नेता और पूर्व सांसद शहाबुद्दीन ने जेल से बाहर निकलते ही कहा भी है कि नीतीश कुमार परिस्थितियों के कारण मुख्यमंत्री हैं। नीतीश जनता के नेता (मास लीडर) भी नहीं हैं। उनके नेता सिर्फ लालू प्रसाद यादव हैं और वह लालू की राजनीति करते हैं।

शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

खाट बिछेगी तो नहीं, खड़ी ही होगी

 कांग्रेस  उत्तरप्रदेश में अपनी सियासी जमीन हासिल करने के सारे प्रयत्न कर रही है। इसी रणनीति का हिस्सा हैं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की 'खाट सभाएँ' और 'देवरिया से दिल्ली की यात्रा'। देवरिया से दिल्ली तक 2500 किलोमीटर की यात्रा में राहुल गांधी 39 जिलों के 55 लोकसभा क्षेत्रों और 233 विधानसभा सीटों से होकर गुजरेंगे। देवरिया जिले के रुद्रपुर के किसानों के साथ पहली खाट सभा से उन्होंने अपनी यह यात्रा प्रारंभ कर दी है। हालांकि, कांग्रेस को यह स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि उसके लिए दिल्ली का रास्ता देवरिया होकर नहीं जाता है। दरअसल, कांग्रेस ने अपना 'होमवर्क' ठीक से नहीं किया है। उसका कारण है कि कांग्रेस उत्तरप्रदेश में अपनी स्थिति का ठीक प्रकार से मूल्यांकन नहीं कर रही है। सिर्फ 'इवेंट मैनेजमेंट' से चुनाव नहीं जीता जा सकता, वह मात्र सहायक हो सकता है और यह तभी सहायक हो सकता है, जब आपने अपनी हैसियत का मूल्यांकन करके राजनीतिक प्रबंधन कर लिया हो। यहाँ राहुल गांधी चूक रहे हैं। यही कारण है कि उत्तरप्रदेश को समझने बिना उन्होंने खाट सभा का आयोजन किया और अपनी खटिया लुटवा दी।

बुधवार, 7 सितंबर 2016

आजम खान ने किया बाबा साहेब का अपमान

 उत्तरप्रदेश  सरकार के मंत्री और मुस्लिम नेता आजम खान ने साबित कर दिया है कि उन्हें मर्यादा में रहना आता नहीं। इस बार उन्होंने अपनी बदजुबान से डॉ. भीमराव आंबेडकर का अपमान किया है। संभवत: यह उनके शिक्षण और प्रशिक्षण का दोष है कि उन्होंने एक बार फिर अपनी दूषित मानसिकता को जाहिर कर दिया। आजम खान ने भारतरत्न डॉ. भीमराव आंबेडकर का नाम सड़कछाप भाषा में उच्चारित किया और उनकी प्रतिमा का मजाक उड़ाते हुए अपमानजनक टिप्पणी की। गाजियाबाद में हज हाउस के उद्घाटन कार्यक्रम में आजम खान ने डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा की ओर इशारा करते हुए कहा - इस 'आदमी' के हाथ का इशारा कहता है कि जहां मैं खड़ा हूं वह तो मेरी जमीन है ही, सामने का खाली पड़ा प्लॉट भी मेरा है। आजम खान समाजवादी पार्टी के बड़े नेता हैं। पार्टी उनके सहारे मुसलमानों के वोट कबाड़ती है। यही कारण है कि जब यह आदमी देश के महापुरुष डॉ. आंबेडकर के लिए घटियाभाषा का इस्तेमाल कर उनका उपहास उड़ा रहा था, तब वहाँ बैठे उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खामोश रहते हैं। उन्होंने अपने मंत्री और सपा नेता की इस घटिया चुटकुलेबाजी का प्रतिरोध नहीं किया। बल्कि मुख्यमंत्री स्वयं भी अतार्किक बातें करने में शामिल हो गए। उत्तरप्रदेश की सुरक्षा व्यवस्था पर जब सवाल उठ रहे हैं तब अखिलेश यादव पुलिस व्यवस्था की तारीफ करते हुए कहते हैं उसी मंच से कहते हैं कि उत्तरप्रदेश पुलिस ने आजम खान की भैंस खोजी और आगरा में भाजपा नेता का कुत्ता भी ढूंढ़ लाए हैं। मुख्यमंत्री का यह बयान उनकी असंवेदनशीलता का द्योतक है, जिन्हें न तो देश के महापुरुष के अपमान से फर्क पड़ा और न ही वह राज्य में पनप रहे 'गुंडाराज' से चिंतित दिखाई दिए। मुख्यमंत्री की चुप्पी उनके मंत्री द्वारा डॉ. आंबेडकर के बारे में की गई अपमानजनक टिप्पणी पर स्वीकृति की मुहर लगाती है।

मंगलवार, 6 सितंबर 2016

अलगाववादियों से बात क्यों?

 केंद्र  सरकार ने जम्मू-कश्मीर में शांति बहाली के लिए राजनीतिक पहल शुरू की। इसके तहत एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जम्मू-कश्मीर में बातचीत के लिए भेजा गया। इस दल में सभी विचारधारा के लोग शामिल थे। प्रतिनिधिमंडल ने करीब 300 लोगों से मुलाकात की है। इनमें सिविल सोसायटी, राजनीतिक दल, यूनिवर्सिटी के शिक्षक, कुलपति, फल उत्पादक, छात्र और बुद्धिजीवी शामिल थे। सरकार ने बड़ा दिल दिखाते हुए अलगाववादियों से भी बात करने की इच्छा जताई। जैसा कि तय है कि अलगाववादियों को जम्मू-कश्मीर की शांति व्यवस्था में कोई दिलचस्पी नहीं है, क्योंकि उन्होंने तो स्वयं ही वहाँ हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देने की सुपारी ले रखी है। इसलिए जब प्रतिनिधिमंडल अलगाववादियों से बातचीत करने के लिए पहुँचा तब उसे निराशा ही हाथ नहीं लगी, बल्कि अपमानजनक स्थितियों का सामना भी करना पड़ा। अलगाववादियों ने न केवल हद दर्जे की असहिष्णुता का प्रदर्शन किया बल्कि अपनी नीयत भी दिखा दी। हालांकि यह सरकार की भूल है, जो उसने आतंकी विचारधारा को प्रश्रय देने वाले अलगाववादियों से बातचीत करने की पहली की। चोरी रोकने के लिए भला चोरों से क्या बात करना? भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं का स्वागत अलगाववादियों ने जिस तरह किया, उससे जाहिर होता है कि यह कभी नहीं सुधरेंगे।

सोमवार, 5 सितंबर 2016

डिजिटल इंडिया : जीवन होगा सुगम

यह आलेख मीडिया विमर्श के सितंबर-2016 के अंक में प्रकाशित हुआ है।

नरेन्द्र मोदी सरकार की महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, डिजिटल इंडिया। इस परियोजना का मूल उद्देश्य है 'भारत को डिजिटली सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तित करना।' डिजिटल इंडिया के जरिए सरकार पारदर्शी व्यवस्था कायम करना चाहती है। यानी सुशासन। सरकार के लिए यह सिर्फ नारा नहीं है, बल्कि लोगों के जीवन को सुगम बनाने का दृढ़ संकल्प है। यह इसलिए कहा जा सकता है, क्योंकि सरकार ने इस लोक कल्याणकारी उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक चरणबद्ध योजना भी तैयार की है। 21 अगस्त, 2014 से प्रारंभ हुए इस कार्यक्रम को केंद्र सरकार ने अगले पाँच वर्ष में पूरा करने की योजना बनाई है। यह उम्मीद की जा रही है कि डिजिटल इंडिया कार्यक्रम 2019 तक गाँवों समेत देशभर में पूरी तरह से लागू हो जाएगा। सरकार इस दिशा में प्रभावी ढंग से कदम बढ़ा रही है। अनेक मोर्चों पर सरकार सफल भी हुई है। फिर भी कहना होगा कि मंजिल अभी दूर है। दरअसल, गाँव में बसने वाले भारत के प्रत्येक क्षेत्र में अभी इंटरनेट ही नहीं पहुँचा है। जहाँ पहुँचा भी है, वहाँ इंटरनेट की गति (डाउनलोड-अपलोड स्पीड) ही इतनी धीमी है कि उपयोगकर्ता उदासीन हो जाता है।

गुरुवार, 1 सितंबर 2016

समय के साथ कदमताल करता संघ

 राष्ट्रीय  स्वयंसेवक संघ प्रतिवर्ष दशहरे पर पथ संचलन (परेड) निकालता है। संचलन में हजारों स्वयंसेवक एक साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ते जाते हैं। संचलन में सब कदम मिलाकर चल सकें, इसके लिए संघ स्थान (जहाँ शाखा लगती है) पर स्वयंसेवकों को 'कदमताल' का अभ्यास कराया जाता है। स्वयंसेवकों के लिए इस कदमताल का संदेश है कि हमें सबके साथ चलना है और सबको साथ लेकर चलना है। संघ की गणवेश में बदलाव का मूल भाव भी 'सबको साथ लाने के लिए समयानुकूल परिर्वतन' है। हालांकि, विरोधियों ने इसमें भी संघ निंदा का प्रसंग खोज लिया। आलोचक कह रहे हैं कि संघ ने 90 साल बाद 'चोला' बदल लिया। संघ के ज्यादातर आलोचक विटामिन 'ए' की कमी से होने वाले रोग 'रतौंधी' का शिकार हैं। इस रोग से पीडि़त व्यक्ति को रात में कम दिखाई देता है, लेकिन इन आलोचकों को दिन में भी आरएसएस समझ नहीं आता है। इसलिए वे संघ की प्रत्येक गतिविधि पर परिहास करते हैं। इनकी उलाहनाओं और छींटाकसी के बीच भी संघ अपनी मौज में जमाने के साथ आगे बढ़ता चला जा रहा है। संघ की गणवेश में 'नेकर' की जगह 'पैंट' समयानुकूल परिवर्तन है। हमें याद करना चाहिए कि अप्रैल-2016 में नागौर (राजस्थान) में हुई प्रतिनिधि सभा की बैठक के दौरान सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा था कि संघ वक्त के साथ चलने वाला संगठन है। भविष्य में भी हम वक्त के साथ बदलते रहेंगे। इससे पूर्व सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने कहा था कि संघ कोई रूढि़वादी संगठन नहीं है। समय के अनुकूल हर चीज बदलती है। जो अपने अन्दर बदलाव नहीं करता है, वह समाप्त हो जाता है। संघ के शीर्ष पदाधिकारियों के इन बयानों से स्पष्ट है कि समाज के साथ चलने के लिए संघ ने गणवेश में परिवर्तन को स्वीकार किया है। यह परिवर्तन आगामी विजयादशमी के पर्व पर निकलने वाले 'पथ संचलन' में दिखाई देगा।