शुक्रवार, 24 जून 2016

इसरो ने बढ़ाया मान

 भारतीय  अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक साथ 20 उपग्रह भेजकर अंतरिक्ष में भारत की धाक जमा दी है। अंतरिक्ष में एक साथ 20 या उससे अधिक उपग्रह भेजने के मामले में रूस (33) और अमेरिका (29) ही हमसे आगे हैं। हमारे वैज्ञानिकों की मेहनत को देखते हुए प्रतीत होता है कि वह दिन दूर नहीं जब हम सबसे आगे होंगे। आठ साल के भीतर ही इसरो ने एक साथ 10 उपग्रह भेजने के अपने कीर्तिमान को पीछे छोड़कर भी इस बात के संकेत दिए हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने हम सबको अपनी छाती चौड़ी करके चलने का अवसर दिया है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अमेरिका जैसा उन्नत देश भी अंतरिक्ष में उपग्रह भेजने के लिए भारत की सेवाएं ले रहा है। बुधवार को अंतरिक्ष में भेजे गए 20 उपग्रहों में से 13 अमेरिका के, दो कनाडा के, जर्मनी और इंडोनेशिया का एक-एक और भारत के तीन उपग्रह थे। इनमें से एक उपग्रह गूगल जैसी बड़ी कंपनी का भी है। इसका मतलब यह है कि भारत की क्षमता पर दुनिया भरोसा दिखा रही है। उपग्रह भेजने में भारत की सफलता दर 93 प्रतिशत है।
          भारतीय वैज्ञानिकों की मेधा का कमाल है कि इसरो ने अमेरिका की एजेंसी नासा की तुलना में 10 गुना कम खर्च में उपग्रह भेजना की क्षमता विकसित कर ली है। सबसे सस्ती सैटेलाइट लॉन्चिग की तकनीक के कारण इसरो अब तक 20 देशों के 57 उपग्रह अंतरिक्ष में भेज चुका है। इससे भारत को एक हजार करोड़ रुपये की कमाई हुई है। सीमित संसाधनों में देश के लिए महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां अर्जित करने वाले इसरो के वैज्ञानिकों का अभिनंदन किया जाना चाहिए। वाकई इसरो के वैज्ञानिकों ने भारतीयों की काबिलियत का परचम दुनिया में फहरा दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट कर एक साथ 20 उपग्रह छोडऩे की उपलब्धि पर इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई और धन्यवाद दिया। उन्होंने उन छात्रों को भी प्रोत्साहित किया, जिन्होंने भारत के तीन उपग्रह में से दो उपग्रह तैयार किए हैं। इसरो की इस उपलब्धि से दुनिया में संदेश गया है कि आने वाला वक्त वाकई भारत का है। भारतीय मेधा प्रत्येक क्षेत्र में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रही है। 
         भारत अब तक छोटे-छोटे लेकिन मजबूत कदमों से आगे बढ़ता रहा है, लेकिन अब उसने तरक्की की राह पर रफ्तार भी पकड़ ली है। नये भारत के निर्माण की रफ्तार को समझने के लिए इसरो की कहानी दिलचस्प है। इसे प्रत्येक भारतीय को जानना चाहिए। ताकि हम सब भी भारत के लिए बड़ा सपना देखने के लिए प्रेरित हों। आज से 47 साल पहले यानी 1969 में वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई की संकल्पना से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का जन्म होता है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम की प्रारंभिक तस्वीरें हमें चौंकाती हैं और यह भी बताती हैं कि यदि देश के लिए बड़ा सपना देखने का जज्बा और उसे पूरा करने की लगन हो तब कुछ भी असंभव नहीं है। एक वक्त था जब भारत में राकेट साइकिल पर और उपग्रह बैलगाड़ी में रखकर लाए जाते थे और आज का समय देखिए दुनिया का प्रत्येक देश इसरो से अपने उपग्रह अंतरिक्ष में भिजवाना चाहता है। अब जरा सोचिए, भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान ने कितनी लम्बी छलांग लगाई है। इसीलिए यह गर्व का समय है। और बड़ा सपना देखने का समय है। नये लक्ष्य लेने का समय है। 

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-06-2016) को "इलज़ाम के पत्थर" (चर्चा अंक-2384) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति रानी दुर्गावती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।

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  3. इसरो पर हर भारतीय को गर्व है..प्रेरणात्मक जानकारी देता सुंदर आलेख..

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    1. धन्यवाद अनीता जी... वाकई इसरो ने माथा ऊँचा कर दिया।

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  4. उत्तर
    1. बिलकुल इसरो और हमारे वैज्ञानिकों ने गर्व का अवसर उपलब्ध कराया है।

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