मंगलवार, 26 जनवरी 2016

आओ बनाएं 'गणतंत्र'

 पि छले साल-छह महीनों से जिस तरह का वातावरण देश में बनाने की कोशिश की जा रही है, वह चिंता का विषय है। अपने विरोधों और स्वार्थों की पूर्ति में हम देश को बदनाम करने से भी बाज नहीं आए। चयनित दृष्टिकोण वाले साहित्यकारों, इतिहासकारों और कलाकारों ने देश को 'असहिष्णु विचारधारा' का शिकार बनाया। भारतीय जनता पार्टी और नरेन्द्र मोदी से नफरत की हद तक मनभिन्नता रखने वाले राजनीतिक दलों की 'राजनीतिक असहिष्णुता' के निशाने पर संसदीय परंपराएं रहीं। संसद ठप रही। बुद्धिवादी अवसर खोजते रहे अपने वैचारिक और राजनीतिक विरोधियों की लानत-मलानत करने के लिए। अभिव्यक्ति की आजादी और असहिष्णुता का ऐसा हौव्वा खड़ा किया गया कि आम आदमी भौंचक रह गया। आम आदमी के आस-पास सबकुछ ठीक चल रहा है लेकिन बुद्धिवादी उसे बार-बार अहसास दिलाने का कुप्रयास करते रहे कि डेढ़ साल में तानाशाही आ गई है। न बोलने की आजादी। न खाने की आजादी। न पहनने की आजादी। न कहने की आजादी। न रहने की आजादी। मानो देश फिर गुलाम हो गया। मानो देश से गणतंत्र खत्म हो गया। मानो देश में कोई संविधान नहीं, कोई कानून व्यवस्था नहीं। लेकिन, सच क्या है, सब जानते हैं।

शनिवार, 23 जनवरी 2016

अब पूरे सच का इंतजार


 प्र धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती पर उनसे जुड़ी 100 फाइलों को सार्वजनिक कर दिया है। इन फाइलों को पोर्टल 'netajipapers.gov.in' पर डिजीटल रूप में उपलब्ध कराया गया है। साथ ही कहा गया है कि नेताजी से जुड़ी और फाइलों को 25-25 की संख्या में प्रतिमाह सार्वजनिक किया जाएगा। फिलहाल तो इन फाइलों से नेताजी की मृत्यु के रहस्य से पर्दा नहीं उठ सका है। हालांकि कुछ चौंकाने वाले तथ्य जरूर सामने आए हैं। फाइलों से सामने आई जानकारी के मुताबिक महात्मा गांधी का मानना था बोस जिंदा थे, प्लेन क्रेश में उनकी मौत नहीं हुई थी। 23 सितंबर 1945 को कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना आजाद ने मृत्यु की पुष्टि न होने के कारण बोस को श्रद्धांजलि नहीं दी। स्वयं जवाहर लाल नेहरू ने नेताजी के भाई सुरेश बोस को पत्र में लिखा था कि नेताजी की मृत्यु के ठोस सबूत नहीं दे सकते। संभावना है कि वे जीवित हों और गुप्त रूप से रह रहे हों। बहरहाल, जैसे-जैसे फाइलों का गंभीरता से अध्ययन होता जाएगा और नए-नए सच सामने आते जाएंगे।

गुरुवार, 21 जनवरी 2016

आतंक और आतंकी किसी के सगे नहीं

 आ तंकियों ने पाकिस्तान के चारसद्दा स्थित बाचा खान विश्वविद्यालय में घुसकर विद्यार्थियों को अपनी बर्बरता का शिकार बनाया है। विद्यार्थी अपने भविष्य को संवारने के लिए तालीम हासिल कर रहे थे। जहाँ हसीन सपने जन्म ले रहे थे, बर्बर मानसिकता के हमलावरों ने छात्रों के उन्हीं मस्तिष्क को उड़ा दिया। यह घटना बेहद दर्दनाक है। पाकिस्तान सरकार के लिए यह चिंता की बात होनी चाहिए कि आतंकवादी शिक्षा प्राप्त कर रहे युवाओं को अपना शिकार बना रहे हैं। तकरीबन एक साल पहले दिसंबर-२०१४ में आतंकियों ने पेशावर में सेना के स्कूल पर हमला किया था। उस हमले में करीब १५० मौत हुईं थीं, इनमें ज्यादातर विद्यार्थी थे। दोनों शिक्षा संस्थानों पर हमला करके छात्रों की जान लेने वाला आतंकी संगठन एक ही है। तहरीक-ए-तालिबान ने विद्यार्थियों का खून बहाया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बाचा खान विश्वविद्यालय पर हुए आतंकी हमले में करीब २५ लोगों की जान चली गई है, जबकि करीब ५० गंभीर घायल हैं। दुनियाभर में इस हमले की निंदा हो रही है।

बुधवार, 20 जनवरी 2016

आत्महत्या पर राजनीति से बाज आएं

 के न्द्रीय विश्वविद्यालय हैदराबाद के शोधार्थी छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या अफसोसजनक है। किसी युवा का इस तरह जाना स्वस्थ समाज के लिए ठीक नहीं है। लेकिन, इससे भी अधिक अफसोसजनक और शर्मनाक रोहित की आत्महत्या पर हो रही राजनीति है। हमारे राजनेताओं ने जातिभेद को खत्म करने के लिए भले कभी कोई प्रयास नहीं किया होगा, लेकिन इस मामले को जातिवाद का रंग देकर जातिभेद को गहरा करने का काम जरूर कर रहे हैं। रोहित वेमुला की आत्महत्या को जातिवाद से जोडऩा किसी भी नजरिए से ठीक नहीं है। लेकिन, अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए हम यह पाप भी कर रहे हैं। जातिवाद की इस घृणित राजनीति के जरिए हम दलित और सवर्ण को एक-दूसरे के सामने दुश्मन की तरह खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं। हम सामाजिक समरसता को बिगाडऩे के लिए इतने उतावले क्यों बैठे हैं? जबकि इतना सच तो सबको पता है कि रोहित वेमुला के छात्रावास से निष्कासन में कहीं भी जाति कारण नहीं थी। इसके बाद भी हमारे राजनेता और बुद्धिवादी झूठ बोलने का साहस कहाँ से बटोरकर लाते हैं?

शनिवार, 9 जनवरी 2016

धर्म पर वामपंथ का शीर्षासन

 राजनीति  किसी को भी शीर्षासन करा सकती है। फिलहाल वामपंथ धर्म पर शीर्षासन करता हुआ नजर आ रहा है। अपनी नीतियों, विचारों और दोहरे आचरण के कारण वामपंथी दल भारत में लगभग अप्रासंगिक हो चुके हैं। वामपंथी दलों का राजनीतिक जनाधार लगातार खत्म होता जा रहा है। भारतीय राजनीति में अपना वजूद बचाने के लिए वामपंथी दल उदारवादी रास्ते की ओर बढऩे का विचार बना रहे हैं क्या? 'ठहरे हुए पानी' में कुछ दिनों से अजीब-सी हलचल हो रही है। यही हलचल इस सवाल का कारण है। 'धर्म को अफीम' मानने वाली विचारधारा की रुचि 'धर्म' में बढ़ती नजर आ रही है। सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी केरल के शिवगिरि स्थित समाज सुधारक संत श्रीनारायणगुरु के तीर्थस्थान पहुंचे और धर्म के प्रति वामपंथी नजरिए को स्पष्ट करने का प्रयास किया। घोषित तौर पर नास्तिक सीताराम येचुरी का श्रीनारायणगुरु के तीर्थस्थान पर पहुंचना, कोई सहज घटना नहीं है। राजनीति ही नास्तिक येचुरी को खींचकर यहाँ ले आई है। गौरतलब है कि श्रीनारायणगुरु की बहुत मान्यता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी यहाँ आ चुकी हैं। केरल में आने वाले चुनावों के मद्देनजर श्रीनारायणगुरु के अनुयायियों को अपनी ओर आकर्षित करने का लोभ येचुरी को धर्म की सरण में ले आया है। 

शुक्रवार, 8 जनवरी 2016

अब राष्ट्रगान से क्या आपत्ति?

 क्या किसी की धार्मिक भावनाएं राष्ट्र से ऊपर होनी चाहिए? जाहिरतौर पर जवाब होगी- 'नहीं'। प्रत्येक भारतीय के लिए उसका देश सबसे पहले होना चाहिए। राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान सबको करना चाहिए, चाहे वह किसी भी सम्प्रदाय या धर्म को मानने वाला हो। लेकिन, क्या कारण है कि एक संप्रदाय बार-बार भारतीय प्रतीकों का अपमान करता है? पहले राष्ट्रगीत वन्देमातरम् का विरोध किया गया। राष्ट्रगीत को इस्लाम विरोधी कहकर उसका गायन बंद कर दिया। अब राष्ट्रगान का विरोध होने लगा है। राष्ट्र के प्रतीक चिह्नों के विरोध को राष्ट्र का विरोध क्यों नहीं माना जाना चाहिए? राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान का विरोध सरासर राष्ट्र की अवमानना है। कोलकाता के तालुकपुर मदरसे के हेडमास्टर काजी मासूम अख्तर को इसलिए मारा-पीटा गया क्योंकि वह बच्चों को गणतंत्र दिवस के लिए राष्ट्रगान का अभ्यास करा रहे थे। बच्चों से जन-मन-गण गवाने पर कई मौलानाओं और उनके समर्थकों ने मिलकर काजी मासूम अख्तर को पीट दिया। मौलवियों ने राष्ट्रगान को इस्लाम विरोधी गीत करार दिया है। उनका कहना है कि यह 'हिन्दूवादी गीत' इस्लाम को अपवित्र करता है। इस्लाम इतना छुईमुुई धर्म है क्या? बात-बेबात पर इस्लाम खतरे में आ जाता है?  

गुरुवार, 7 जनवरी 2016

कौन हैं देश का सांप्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे वाले लोग?

 प श्चिम बंगाल का जिला मालदा क्यों जला? सड़कों पर ढाई लाख लोगों की भीड़ क्यों उतरी थी? किसने संविधान और कानून की धज्जियां उड़ाईं? किसने दो दर्जन से अधिक वाहनों को आग के अवाले किया? इनमें पुलिस के वाहन भी थे। किसने अराजकता की हद तोड़कर पुलिस स्टेशन (कालियाचक) पर हमला बोला, थाने में घुसकर तोड़-फोड़ की, किसने पुलिस को मारा-पीटा? २५ घरों में जमकर लूटपाट करने वाली भीड़ किसकी थी? इतनी अराजकता, इतनी दशहतगर्दी, आखिर किसलिए? इस दशहतगर्दी पर चुप्पी क्यों? इस चुप्पी का मतलब क्या है? कोई नहीं बता रहा है। मालदा को दहशत के हवाले करने की इक्का-दुक्का खबरों को छोड़ दें तो यह खबर कहीं नहीं है। आखिर, यह क्यों नहीं बताया जाना चाहिए कि देश का सांप्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे वाले यह लोग कौन हैं?