सोमवार, 12 अक्तूबर 2015

विकास के लिए दबेगा बटन

बि हार विधानसभा की 243 में से 49 सीट पर आज मतदान है। बीते दिनों में बिहार में हालात ऐसे बन गए हैं कि ऊंट किस ओर करवट लेगा, यह बताता बहुत मुश्किल हो गया है। विभिन्न ओपिनियन पोल भी इस बात की ताकीद करते हैं कि इस बार मतदाता के मूड को समझ पाना आसान नहीं है। कोई सर्वे महागठबंधन को बढ़त दिखा रहा है तो कोई एनडीए गठबंधन की सरकार बनने के संकेत दे रहा है। पहले चरण का चुनाव प्रचार थमने के ठीक पहले आया ज़ी मीडिया का सर्वे कहता है कि एनडीए को स्पष्ट बहुतम मिल रहा है। एनडीए के खाते में 162 सीटें आ सकती हैं। जबकि महागठबंधन 51 सीट पर सिमटता दिख रहा है।

        ज़ी मीडिया के सर्वे में आये रुझानों पर सहसा भरोसा करना कठिन हैं। लेकिन, सर्वे पर अंगुली उठाने से पूर्व यह जान लेना जरूरी है कि ज़ी मीडिया ने यह सर्वे 5 से 8 अक्टूबर के बीच किया है। यह वह समय है जब बिहार में चुनाव प्रचार के मुद्दे और वोट मांगने का एजेंडा पूरी तरह बदल चुका है। जातिवाद और साम्प्रदायिकता के तीखे मसालों के बीच विकास का स्वाद ख़त्म हो गया। इन मसालों ने सारा मामला उलट दिया है। बीजेपी पर साम्प्रदायिकता की तोहमत लगाने और मुस्लिम वोटों को लुभाने के फेर में राजद और जदयू के नेता हिंदुओं को नाराज कर बैठे हैं। 
        लालू प्रसाद यादव ने हिंदुओं को गोमांस खाने वाला बता दिया तो उनकी ही पार्टी के कद्दावर नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने जबरन ऋषि-मुनियों के मुंह में गोमांस ठूंस दिया। आरक्षण की बहस को गलत दिशा देकर भी लालू ने अगड़ों को अपने खिलाफ कर लिए। महागठबंधन में तीन खिलाड़ी हैं। लेकिन, बैटिंग सिर्फ लालू कर रहे हैं। टीम के कप्तान नीतीश कुमार और कमजोर खिलाड़ी सोनिया/राहुल गांधी की चर्चा ही नहीं हो पा रही है। इसका खामियाजा महागठबंधन को होता दिख रहा है। यही कारण है कि सर्वे दर सर्वे एनडीए को मिलने वाले वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी हो रही है। 
       बहरहाल, आज बिहार की जनता के पास मौका है कि वह विकास के लिए बटन दबाये। 60 साल से बिहार बदहाल है। दूसरे प्रदेश धीरे-धीरे विकास के पथ पर बढ़ते जा रहे हैं। बीमारू राज्य की श्रेणी से भी दूसरे राज्य बाहर आ गए हैं। क्योंकि, वहां की जनता ने सही समय पर अपने मताधिकार का उपयोग कर लिया। जाति के घेरे तोड़ने का वक़्त है। जाति की पॉलिटिक्स करने वाले पूरे प्रदेश का विकास नहीं कर सकते। साम्प्रदायिकता की आड़ में तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले भी अब तक बिहार का भला नहीं कर सके हैं। बिहार की बेहतरी का अवसर है। सोच-विचार कर अपने मताधिकार का उपयोग करना होगा। पाँच साल में अवसर आया है। वोट आपका है। प्रदेश आपका है। बात सिर्फ वोट की नहीं है, बात प्रदेश की है।

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