शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

देश की एकता सर्वोपरि

 इ स दशहरे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने नब्बे वर्ष पूर्ण कर लिए हैं। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने १९२५ में संघ का बीज बोया था, आज वह वटवृक्ष बन गया है। सम्पूर्ण समाज में संघ की शाखाएं व्याप्त हो चुकी हैं। यह संघ की उपलब्धि है कि इतने लम्बे कार्यकाल में उसने खुद को मजबूत ही किया है, वरना ज्यादातर संगठन इतने लम्बे समय के बाद अपना अस्तित्व खो देते हैं। संघ आज भी बढ़ रहा है तो उसके पीछे संघ की कार्यपद्धति महत्वपूर्ण है। वह व्यक्ति केन्द्रित न होकर संगठन पर आधारित है। संघ के कार्यकर्ता प्रतिवर्ष विजयादशमी के अवसर पर सरसंघचालक से पाथेय प्राप्त करते हैं। नागपुर में संघ के मुख्यालय में विजयादशमी पर्व पर होने वाले सरसंघचालक के उद्बोधन की प्रतीक्षा संघ के स्वयंसेवकों के साथ-साथ समाज, राजनीति और मीडिया को भी रहती है। इस दशहरे पर संघ के वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत ने देश की एकता के लिए छोटी-छोटी घटनाओं को बेवजह तूल नहीं देने का आग्रह किया है।
       उन्होंने कहा है- 'छोटी-छोटी घटनाएं होती हैं। उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। ये छोटी-छोटी घटनाएं होती रहती हैं लेकिन ये भारतीय संस्कृति को विकृत नहीं कर सकती हैं। हमारा देश एकजुट रहा है और एकजुट रहेगा।' सरसंघचालक ने स्पष्टतौर पर दादरी और फरीदाबाद की घटनाओं का जिक्र नहीं किया। लेकिन, उनका इशारा स्पष्ट था। दोनों घटनाओं को लेकर जिस तरह की राजनीति की गई है, उसकी निंदा सरसंघचालक ने की है। उनकी चिंता वाजिब है। हमारे राजनेताओं और मीडिया ने दोनों घटनाओं पर गैर-जिम्मेदारान रवैया अख्तियार किया, जिसके कारण ये घटनाएं सांप्रदायिक और सामाजिक सौहार्द के लिए गंभीर नजर आने लगीं। मानो संपूर्ण देश सांप्रदायिक आग से झुलसने लगा है। 
       दादरी की घटना पर तो साहित्यकारों ने भी जिस तरह साहित्य को राजनीति में घसीटा है, उससे देश के बाहर भी भारत की छवि खराब हुई है। दोनों घटनाओं का होना चिंताजनक है। लेकिन, ऐसा नहीं है कि इस तरह की अचानक से होने लगी हैं। यह सब पहले से होता आ रहा है। फर्क इतना हो गया है कि अब कुछ ताकतें जानबूझकर छोटी-छोटी घटनाओं को तूल देकर यह साबित करना चाह रही हैं कि भारत में स्थितियां बहुत भयंकर हैं। जबकि वास्तविकता इसके विपरीत है। इसीलिए सरसंघचालक कह रहे हैं कि यदि हम यूं ही छोटी-छोटी घटनाओं को तूल देने लगेंगे तो निश्चित ही अपने सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर बैठेंगे। इस तरह की घटनाओं के बाद राजनीति करने की अपेक्षा यह प्रयास करने चाहिए कि फिर से कोई दादरी या फरीदाबाद की घटना न हो। देश की एकता के लिए यह भावना जरूरी है। हमें जिम्मेदार बनना होगा। इस तरह की घटनाओं में राजनीतिक स्वार्थ तलाशने लगेंगे तो फिर बहुत मुश्किल होने वाली है। 
      राजनीति यह कतई नहीं कहती है कि देश को सांप्रदायिक और जातिवाद की आग में जलाकर हाथ सेंको। राजनीति करने के लिए बहुत से मुद्दे पड़े हैं। देश की एकता को नुकसान पहुंचाने वाले मुद्दों पर राजनीति न हो तो बेहतर है। सरसंघचालक के पाथेय को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरणा पाने वाले तमाम संगठनों को भी आत्मसात करना चाहिए, जिनके कार्यकर्ता बेवजह बेतुकी बयानबाजी में शामिल हो जाते हैं। सरसंघचालक ने कहा है कि देश में अच्छा माहौल है। आज देश नकारात्मक वातावरण से निकलकर उम्मीद और विश्वास के माहौल में है। 

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