मंगलवार, 4 अगस्त 2015

बनाना होगा धरती को जीने लायक

 ह म सबके हृदय द्रवित हैं। आँखें नम हैं। भारत के पूर्व राष्ट्रपति, वैज्ञानिक और भारत रत्न डॉ. एपीजे कलाम चले गए। असल मायने में वे गए नहीं हैं बल्कि हमारे दिलों में और गहरे उतर गए हैं। यह मौका है, जब हमें कलाम साहब के सिद्धांतों को अपने व्यक्तित्व में उतार लेना होगा। वे चाहते थे कि उन्हें हमेशा शिक्षक के रूप में याद रखा जाए। संभवत: इसीलिए अपने पीछे एक अहम पाठ छोड़ गए हैं। एक बड़ा व्याख्यान, जो आईआईएम शिलांग में देना था- 'धरती को जीने लायक कैसे बनाया जाए।' उनके इस पाठ को हमें स्वयं भी बार-बार पढऩा है, जीवन में उतारना है और दूसरों को भी पढ़ाना है। उनके पाठ को आगे बढ़ाने के लिए प्रत्येक भारतीय को संकल्प लेना होगा। 

        डॉ. कलाम दूरदृष्टा थे। उनकी सोच स्पष्ट थी। उनके लिए जीवनपर्यंत तक राष्ट्र सबसे पहले रहा। वे घटनाओं का बड़ी सूक्ष्मता से अध्ययन करते थे। सार्वजनिक जीवन में आने के बाद उन्होंने नये सिरे से विश्व समाज का आकलन किया। अपने राष्ट्र भारत को लेकर वे अधिक चिंतित रहते थे। देश की बेहतरी के लिए उनका योगदान अपनी जगह है, उसके अलावा भी भारत को सिरमौर बनाने के लिए उनका चिंतन-मनन चलता ही रहता था। 'इंडिया 2020' में वह साफ दिखता है। वे भारत को विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया का सबसे अग्रणी राष्ट्र बनते देखना चाहते थे। युवाओं-छात्रों से उनकी बड़ी उम्मीदें थीं/हैं। इसीलिए वे युवाओं-छात्रों से बहुत प्रेम करते थे और उनके साथ संवाद करना उन्हें बहुत भाता था। उन्हें मालूम था कि आज के युवा को सही दिशा मिल जाए तो वह भारत को विज्ञान के उस शिखर तक फिर से ले जाएगा, जिस पर प्राचीन समय में भारत विराजमान था। अनेक अवसरों पर अपने भाषणों-लेखों में उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि प्राचीन भारत में वैज्ञानिक चेतना अधिक थी। भारत में समाजोन्मुखी विज्ञान था। समय के साथ जैसे-जैसे वैज्ञानिक जागृति कम होती गई, भारत पिछड़ता गया। वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा मिले तो भारत फिर से विज्ञान की उज्ज्वल परंपरा स्थापित हो सकती है। 
        बहरहाल, धरती को जीने लायक तभी बनाए रखा जा सकता है जब लोगों को धार्मिक अंध-विश्वासों, कट्टरपन, रूढिय़ों और कबीलाई मानसिकता से बाहर निकालकर, उनके भीतर विज्ञान की समझ विकसित की जाए। समाज की सोच वैज्ञानिक नहीं होगी, तो वह तरक्की नहीं कर सकेगा। वह छोटे-मोटे गैर जरूरी स्वार्थों में उलझा रहेगा। तरक्की के लिए भी साइंटिस्ट एवं क्रिएटिव दिमागों की जरूरत है इस देश को। कलाम साहब असभ्यताओं के संघर्ष से सदैव बेचैन दिखा करते थे। धरती को जिस दिन उन्होंने छोड़ा था, निश्चित ही पंजाब के गुरदासपुर में हुए आतंकी हमले ने उन्हें सुबह से विचलित कर रखा होगा। हो सकता है लम्बे समय से धर्म के नाम पर चल रहे खूनी संघर्ष के कारण भी यह बड़ा सवाल उनके मन में आया कि धरती को जीने लायक कैसे बनाया जाए? अन्य दूसरे कारण भी हैं। उनकी चिंता और उनके सवाल को अब हमें हल करना होगा। भारतभूमि ही नहीं अपितु समस्त भूमि को जीने लायक बनाने के लिए प्रयास करने होंगे। शुरुआत खुद से करनी होगी। अवसर आया है कि देश में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दिया जाए। वैज्ञानिक समझ बढ़ेगी तो बहुत कुछ सामाजिक बीमारियां खुद-ब-खुद ठीक हो जाएंगी। भ्रष्टाचार, कामचोरी, अफसरशाही का वातावरण कम होगा। नवाचार करने वाले लोगों की संख्या बढ़ेगी। अंधविश्वास कम होगा। धर्म के नाम पर गुण्डागर्दी कम हो सकेगी। यही नहीं तो प्रकृति, प्राकृतिक संसाधन और पर्यावरण के प्रति भी लोग जागरूक होंगे। वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देकर ही धरती को जीने लायक बनाया जा सकता है। 

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