मंगलवार, 4 अगस्त 2015

अब तो इस रोग से मुक्ति चाहिए

 आ खिर आतंकवाद के दंश से कब मुक्ति मिलेगी? यह सवाल प्रत्येक भारतवासी के दिल और जुबान पर है। आतंकवाद ने भारत के कोने-कोने को लहूलुहान कर दिया है। आतंकवादी हमलों में कभी आम आदमी मरते हैं, कभी सिपाही की जान जाती है तो कभी सैनिक शहीद होते हैं। तंग आ गए हैं, कायरों की हरकतों से। बहुत हुआ, अब इस नासूर का इलाज चाहिए। हमेशा-हमेशा के लिए। आतंकवाद को जड़ से खत्म करना कोई असम्भव कार्य नहीं है। यह संभव है। अमरीका और ब्रिटेन सहित अन्य देशों ने अपनी भूमि से आतंकवाद को उखाड़ फेंका है। फिर हम क्यों नहीं कर सकते? कर सकते हैं। आतंकवाद को रोकने के लिए फिर से एक कड़े कानून की जरूरत है। दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है। आतंकवाद को खत्म करने के लिए वर्तमान सरकार से तो और अधिक उम्मीद हैं। राष्ट्रवादी सरकार है। प्रधानमंत्री का सीना भी 56 इंच का है। सुरक्षा बलों को पिछली सरकार के मुकाबले अधिक समर्थन है। अभी हाल ही में म्यांमार की सीमा में घुसकर भारतीय सैनिकों ने आतंकवादियों को मार गिराया था। 

        आतंक को रोकना है तो बाह्य और आतंरिक सुरक्षा मजबूत करनी होगी। सीमाओं को और चाक-चौबंद करना होगा। अभी तो कभी बांग्लादेश से घुसपैठ हो जाती है तो पाकिस्तान से। समुद्री रास्ते से भी आतंकवादी घुसपैठ कर चुके हैं। भारत में आतंकवादी घटनाओं के पीछे कहीं न कहीं पाकिस्तान का समर्थन रहता है। भारत में खून बहाने के लिए जो आतंकवादी आते हैं वे अमूमन पाकिस्तान की जमीन से ही आते हैं। यह भी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान में आतंकी कैम्प भी चल रहे हैं। पंजाब के गुरदासपुर में भी आतंकी वारदात पाकिस्तान से आए लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के तीन आतंकियों ने अंजाम दी है। आधुनिक हथियारों से लैस आतंकवादियों का सामना हमारी पुलिस ने साधारण बंदूकों के साथ किया। सलाम है ऐसे सिपाहियों को जिन्होंने जान की परवाह नहीं की, देश की खातिर शहीद हो गए। इस घटना में हमने तीनों आतंकवादियों को मार गिराया लेकिन अपने बहादुर एसपी बलजीत सिंह के अलावा होमगार्ड के दो और पुलिस के दो जवानों को खो दिया। तीन नागरिकों की भी जान गई है। नमन है शहीदों को। 
        पाकिस्तान ने संवेदना व्यक्त की है। आतंकी घटनाओं में पाकिस्तान की संवेदना जख्म पर नमक छिड़कने का काम करती है। एक तरफ तो आतंक का पालनकर्ता बना बैठा है, दूसरी तरफ संवेदना व्यक्त करने का ढोंग करता है। भारत सरकार को पाकिस्तान को स्पष्ट शब्दों में समझाना होगा कि दोहरा चरित्र अब और नहीं सहन होगा। भय बिनु होय न प्रीत। बार-बार धोखा खाने के बाद भी भारत दुष्ट पड़ोसी पाकिस्तान से दोस्ती के लिए लगातार प्रयासरत है, यह भारत की भलमनसयात है। लेकिन, भारत को समझना होगा कि बिना आंखें तरेरे बात नहीं बनने वाली है। भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच से भी पाकिस्तान पर दबाव डलवाना होगा कि वह अपनी जमीन पर आतंकवादी गतिविधियों को रोके। आतंक के प्रशिक्षण शिशिरों को खत्म करे। अंतरराष्ट्रीय अपराधियों को छिपाकर उनकी मेहमाननवाजी की की जगह उन्हें जेल भेजे। भारत में भी सरकार को नया माहौल बनाने की जरूरत है। लोकतंत्र की आड़ में आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति प्रकट करने वालों को भी सबक सिखाना होगा ताकि आतंकवाद को पनाह देने और उसके प्रति आकर्षित होने का वातावरण न बने। आतंकवादी याकूब मेमन को फांसी से बचाने के लिए चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने वाले 200 महानुभावों में से कितने गुरदासपुर हमले में शहीद जवानों के घर संवेदना व्यक्त करने गए। घर तो छोडि़ए, कितनों ने फेसबुक-ट्विटर पर ही शहीदों को शृद्धांजलि दी। बहरहाल, प्रत्येक भारतीय चाहता है कि अब कभी कहीं भी बम न फूटे। अब कोई गुरदासपुर नहीं चाहिए। इसके लिए जो हो सके, सरकार करे। बस, इस रोग से मुक्ति दिला दे।

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