मंगलवार, 28 जुलाई 2015

कौन हैं आतंकवादी के साथ खड़े लोग?

 व र्ष 1993 के मुम्बई सीरियल धमाकों में 257 निर्दोष लोगों की जान लेने वाले आतंकवादी याकूब मेमन के समर्थन में खड़े लोग कौन हैं? बन्दूक-बम से लोगों का खून बहाने वाले आतंकवादी, नक्सलवादी या फिर उग्रवादी? अंडरवर्ल्ड के लोग? चोर-गुण्डें? अपराधी? नहीं, इनमें से कोई नहीं है। उनके काम-धंधे और पोशाक तो इनसे बिल्कुल नहीं मिलती-जुलती। सोच मिलती है या नहीं, इस बारे में जरूर विचार किया जा सकता है। न्यायालय में दोषी साबित हुए याकूब मेमन के समर्थन में खड़े लोग सफेदपोश हैं। फिल्म, राजनीति और सामाजिक क्षेत्र के प्रतिष्ठित लोग। आतंकवादी के समर्थन में आने से इनकी प्रतिष्ठिता पर भी सवाल खड़े होते हैं। 257 जिन्दगियों और उनसे जुड़े परिवारों की चिंता न करके कैसे एक अपराधी का समर्थन ये लोग कर पा रहे हैं? याकूब मेमन की फांसी की सजा पर रोक लगाने के लिए एक याचिका राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पास भेजी गई है। मेमन की फांसी को रोकने के लिए सिफारिश करने वालों में फिल्म निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट, आनंद पटवर्धन, अभिनेता नसीरुद्दीन शाह, शाहरुख खान, सलमान खान, सांसद और वकील राम जेठमलानी, कम्युनिस्ट नेता वृंदा करात, प्रकाश करात, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर, प्रशांत भूषण और वरिष्ठ पत्रकार एवं समाचार पत्र हिन्दू के सम्पादक एन. राम सहित करीब 200 लोग शामिल हैं।
        एक हत्यारे का विरोध करने की जगह उसका बचाव करने वाले इन लोगों को पहचानना जरूरी है। कौन हैं ये लोग? इनमें से ज्यादातर तो तथाकथित प्रगतिशील कम्युनिस्ट हैं। इस तरह की घटनाओं में कम्युनिस्टों का शामिल रहना लगभग पक्का है। आजादी के पहले से लेकर अब तक का इतिहास यही बताता है। आतंकवादियों और नक्सलवादियों से इन्हें खासी हमदर्दी है। ये वे लोग हैं जिनकी संवेदनाएं तब जागती हैं जब किसी अपराधी, देशद्रोही, आतंकवादी, नक्सलवादी, उग्रवादी को सजा दी जा रही हो। आतंकवादी घटनाओं में जान गंवाने वाले लोगों, परिवारों और सैनिकों के लिए इनके पास संवेदनाएं नहीं हैं। नसीरुद्दीन शाह, शाहरुख खान और सलमान खान का सम्भवत: मुस्लिम प्रेम जाग गया होगा? लेकिन भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा की क्या मजबूरी थी कि उन्होंने पार्टी लाइन से हटकर याकूब मेमन की फांसी का विरोध किया? शत्रुघ्न सिन्हा कुछ समय से जिस तरह का व्यवहार कर रहे हैं, यह स्पष्ट दिख रहा है कि वे ज्यादा दिन भाजपा में टिकने वाले नहीं हैं। अगर शत्रुघ्न सिन्हा खुद न जा रहे हों पार्टी छोड़कर तो इस घटना के बाद भाजपा इन्हें बाहर का रास्ता दिखा दे, ज्यादा बेहतर होगा। आतंकवादियों के लिए जिस कांग्रेस पार्टी के नेता सम्मान प्रकट करते हों, उसके बाकि नेताओं से भी भारत की जनता को ज्यादा उम्मीद नहीं हैं। बहरहाल, विवाद को सबसे पहले हवा दी थी एआईएमआईएम के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद असुद्दीन ओवैसी ने, मजहबी रंग देकर। इसके बाद अभिनेता सलमान खान ने ट्विट करके विवाद को और गहरा दिया। हालांकि बाद में सलमान खान अपने पिता के कहने पर अपने बयान से पलट गए। उन्होंने अपने ट्विट भी हटा लिए और माफी मांग ली। लेकिन, राष्ट्रपति के पास चिट्ठी भेजने वाले आतंकवादी का समर्थन करने के लिए लोकतंत्र की आड़ ले रहे हैं। उनका कहना है कि लोकतंत्र में सबको अपना पक्ष और अपनी बात कहने की आजादी है। एक हत्यारे की चिंता इन्हें है, 257 मृतकों के परिवारों की नहीं। 
      एक बात यह समझ में नहीं आती कि आतंकी घटना में जिसके एक भी परिजन की जान नहीं गई, वह किस हैसियत और अधिकार से आतंकवादी की तरफदारी करता है? शर्म नाम की भी कोई चीज है। संवेदनहीन हृदय हैं क्या इनके? चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने से पहले एक भी व्यक्ति ने उन परिवारों से पूछा कि उनके दिल पर 20 साल तक क्या बीतती रही, जिन्होंने 1993 के बम विस्फोट में अपने बच्चे, माँ-पिता, पति-पत्नी खोये थे। एक भी दिन ये लोग इन परिवारों में उनके हृदय की पीड़ा का अनुभव करने गए थे क्या? किसी भी परिवार के आँसू पोंछे थे क्या इन्होंने? फिर किस हैसियत से उच्चतम न्यायालय के फैसले को चुनौती दे रहे हैं? लोकतंत्र का मतलब यह नहीं कि कुछ तो भी करने की आजादी है। लोकतंत्र में लोक लिहाज भी है। अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए लोकतंत्र का मजाक मत बनाओ। वरना लोकतंत्र से लोगों का भरोसा ही उठ जाएगा। याकूब को माफ करने की गुहार लगाने वालों से निवेदन है कि 257 परिवारों को संवेदना नहीं दे सकते तो कम से कम उनके जले पर नमक छिड़कने की कोशिश तो नहीं करो। आखिर में, कई बार आश्चर्य होता है कि न्यायालय में दोष सिद्ध होने के बाद सजा पाए अपराधी-आतंकवादी का समर्थन भारत में ही संभव है, अन्य कहीं शायद नहीं।

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......

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  2. और कौन हैं ये ......एड्स के वायरस हैं । न न न ! इनकी तुलना मीर ज़ाफर और जयचन्द से भी नहीं की जा सकती है । ये बहुत ख़तरनाक हैं ......देशद्रोही ... । नहीं ...नहीं कोई भी अपशब्द भी हल्का है इनके लिये ।

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