शनिवार, 25 जुलाई 2015

भारत को नहीं दिखा अपना 'रत्न'

 हॉ की के जादूगर के नाम से दुनिया में जिसने भारत का मान बढ़ाया, उसका सम्मान भारत नहीं कर सका। कैसी विचित्र स्थिति है, राष्ट्रीय खेल के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले मेजर ध्यानचंद को भारत सरकार सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित नहीं कर सकी है। लेकिन, दूसरा राष्ट्र (इग्लैण्ड) 25 जुलाई को उन्हें 'भारत गौरव' सम्मान से सम्मानित करने जा रहा है। इग्लैण्ड को तो भारत का गौरव दिख गया लेकिन भारत को अब तक अपना 'रत्न' क्यों नहीं दिख सका है? जबकि 'भारत रत्न अवॉर्ड' का जब भी जिक्र आता है, तब प्रत्येक भारतवासी बड़ी उम्मीद से सरकार की ओर देखता है कि अबकी बार तो 'हॉकी के जादूगर' को सर्वोच्च सम्मान मिल जाएगा। लेकिन, आखिर में पूरे देश को निराश ही होना पड़ता है।
       हॉकी के लिए मेजर ध्यानचंद के अद्भुत समर्पण, देश के लिए उपलब्धियों का ढेर लगाने और उनके साथ पूरे देश का प्यार-समर्थन होने के बाद भी भारत सरकार ने अब तक उन्हें सर्वोच्च अवॉर्ड भारत रत्न से सम्मानित नहीं किया है। ऐसे में सर्वोच्च सम्मान के राजनीतिकरण के आरोपों में सच्चाई ही झलकती है। खेल के क्षेत्र में यह सम्मान क्रिकेट के सितारा और भगवान कहे जाने वाले सचिन तेन्दुलकर को मिला है। सचिन का सम्मान पूरा देश करता है। उनकी प्रतिभा और प्रतिष्ठा से सब परिचित हैं। उनको भारत रत्न देना, न तो गलत फैसला था और न ही कोई जल्दबाजी। सचिन के योगदान को देखते हुए उनके 'भारत रत्न' होने पर किसी को कोई शक और शिकायत नहीं है। लेकिन, यह भी सच ही है कि उन्हें भारत रत्न राजनीतिक कारणों से दिया गया। घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसी कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने देश का ध्यान बांटने के लिए सचिन को सर्वोच्च सम्मान प्रदान किया था। साथ ही, कांग्रेस उस समय तेजी से युवाओं के बीच अलोकप्रिय पार्टी बन गई थी, कांग्रेस का युवा जनाधार पूरी तरह खिसक कर नरेन्द्र मोदी की तरफ जा रहा था। चूंकि सचिन युवा नायक हैं। देश के करोड़ों युवा हृदयों पर वे राज करते हैं। इसलिए कांग्रेस को यह भी लगा कि सचिन को भारत रत्न से सम्मानित कर युवाओं के साथ ही क्रिकेट प्रेमियों का समर्थन प्राप्त किया जा सकता है। उनकी सहानुभूति मिल जाएगी। इस तथ्य को ध्यान में रखकर ही कांग्रेस ने अपने खाते से सचिन तेन्दुलकर को राज्यसभा में भी भेजा। लेकिन, वह भूल गई कि भारत का युवा मेजर ध्यानचंद का भी उतना ही दीवाना है, भले ही वह हॉकी नहीं देखता लेकिन ध्यानचंद के किस्से सुनना उसे अच्छा लगता है। मेजर ध्यानचंद को याद करना ही युवाओं को रोमांचित कर देता है। युवा वर्ग चाहता था कि सचिन तेन्दुलकर से पहले मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न सम्मान मिलना चाहिए था। खेल के क्षेत्र में जब भारत रत्न देने का फैसला हुआ था मेजर साहब का सबसे पहला दावा स्वाभाविक था। लेकिन, कांग्रेस ने राजनीतिक फायदा लेने के लिए 'भारत रत्न' के साथ ही खेल कर दिया। सर्वोच्च सम्मान के पहले और नैसर्गिक हकदार को नजरअंदाज कर अपना स्वार्थ साधना चाहा। 
        29 अगस्त, 1905 को इलाहाबाद के राजपूत घराने में जन्मे मेजर ध्यानचंद 16 साल की उम्र में साधारण सिपाही के तौर पर सेना में भर्ती हो गए थे। ब्राह्मण रेजीमेंट के सूबेदार ने उन्हें हॉकी खेलने के लिए प्रेरित किया। ध्यानचंद ने तीन ओलम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया और तीनों बार देश को स्वर्ण पदक दिलाया। भारत ने 1932 में 37 मैच में 338 गोल किए, जिसमें 133 गोल अकेले ध्यानचंद ने किए थे। जब वे हॉकी लेकर मैदान में उतरते थे तो गेंद इस तरह उनकी स्टिक से चिपक जाती थी मानो गेंद लोहे की हो और स्टिक चुम्बक हो। हॉलैंड में एक मैच के दौरान हॉकी में चुम्बक होने की आशंका में उनकी हॉकी तोड़कर देखी भी गई। इसी तरह जापान में एक मैच के दौरान उनकी स्टिक में गोंद लगे होने की बात भी कही गई। उनके खेल से प्रभावित होकर हिटलर ने उन्हें जर्मनी की ओर से खेलने की पेशकश भी की थी। ऐसे महान और अद्भुत हॉकी खिलाड़ी को कोई भी भारत सरकार अब तक सर्वोच्च सम्मान नहीं दे सकी है। वर्तमान भाजपानीत सरकार से मेजर साहब के प्रेमियों को उम्मीद है कि वह भारत के असली रत्न को पहचानेगी। आज जब इग्लैण्ड उन्हें 'भारत गौरव' से सम्मानित कर रहा है तो हमें भी वे बहुत याद आ रहे हैं।  

2 टिप्‍पणियां:

  1. इस बात पर उस समय भी सवाल उठाया गया था जब तेंदुलकर को भारत रत्न दिया गया था
    काफी कुछ सही कहा है भाई ।

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  2. इस बात पर उस समय भी सवाल उठाया गया था जब तेंदुलकर को भारत रत्न दिया गया था
    काफी कुछ सही कहा है भाई ।

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