शनिवार, 1 नवंबर 2014

मिशनरी पत्रकार

 व्या वसायिक पत्रकारिता के दौर में भी पत्रकारिता किसी के लिए मिशन बनी रही तो वह नाम है जयकिशन शर्मा का। सामाजिक चेतना और सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए पत्रकारिता को औजार बनाने वालों में जयकिशन शर्मा का नाम ऊपर आता है। उनका स्पष्ट मानना है कि पत्रकार का मूल कार्य है समाज जागरण करना। पत्रकारिता ही एक ऐसा जरिया है जिससे समाज को उसके अधिकारों, कर्तव्यों और संभावित खतरों के प्रति सचेत किया जा सकता है। 
      समाजोन्मुखी पत्रकारिता के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले जयकिशन शर्मा बताते हैं कि व्यावसायिकता अखबार चलाने के लिए जरूरी है। पत्रकारिता के व्यावसायिक होने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन जब पत्रकार व्यवसायी हो जाता है तब पत्रकारिता को खतरा होता है। यह पत्रकार को तय करना है कि जो कलम उसने उठाई है, उसका दुरुपयोग नहीं बल्कि जनकल्याण के लिए उसका सदुपयोग हो। 
       62 वर्षीय जयकिशन शर्मा ने अपने 45 वर्षीय पत्रकारिता के कार्यकाल में अनेक पत्रकारों को प्रशिक्षित और संस्कारित किया। ऊर्जा से भरे नौजवानों को पत्रकारिता सिखाने के लिए उन्होंने 'स्वदेश' को 'पाठशाला' बना दिया और स्वयं इस पाठशाला के आचार्य की भूमिका में रहे। सच कहें तो स्वदेश और जयकिशन शर्मा दोनों ही पत्रकारिता की पाठशाला हो गए। उनके सानिध्य में पत्रकारिता सीखे लोग आज हिन्दी मीडिया में अहम पदों पर कार्यरत हैं। सरल हृदय के जयकिशन शर्मा जी सबकी चिंता करते हैं। ग्वालियर में जिस परिसर में स्वदेश का दफ्तर और मशीन लगी है, उसी परिसर में श्री शर्मा का आवास था। युवा पत्रकार अखबार छूटने तक उनके साथ रहकर पत्रकारिता की बारीकियां सीखा करते थे। काम की अधिकता के कारण कई बार कुछ पत्रकार खाना खाने घर नहीं जा पाते थे। जैसे ही यह बात श्री शर्मा को पता चलती तो वे अपने घर पर ही उसके भोजन का प्रबंध करते थे। 
        दैनिक भास्कर के मुकाबले स्वदेश को शीर्ष पर पहुंचाने वाले जयकिशन शर्मा ने सन् 1969 में ग्वालियर से प्रकाशित 'हमारी आवाज' से पत्रकार जीवन की शुरुआत की। 'हमारी आवाज' ही आगे चलकर 'स्वदेश' हो गया। इसके बाद वे रांची चले गए। यहां कुछ वक्त 'रांची एक्सप्रेस' में बिताया। लेकिन, स्वदेश का मोह फिर से खींच लाया। इसके बाद उन्होंने स्वदेश और हिन्दी पत्रकारिता की सेवा को ही अपना ध्येय बना लिया। जयकिशन शर्मा ने करीब 42 वर्ष तक स्वदेश में रहकर हिन्दी पत्रकारिता में अभूतपूर्व योगदान दिया। उन्होंने हिन्दी के शुद्धिकरण के प्रयास किये। अखबारों में मानक हिन्दी का उपयोग हो, इसके लिए विशेष आग्रह किया। 
      अखबारों को अपना दायरा बढ़ाना चाहिए। नए-नए संस्करण प्रारंभ करने चाहिए। यह विचार जयकिशन शर्मा के मन में आया। इसे मूर्तरूप देने के लिए उन्होंने स्वदेश के अलग-अलग संस्करण शुरू कराए। प्रयोगधर्मी और नवाचार में विश्वास करने वाले जयकिशन शर्मा ने बाबरी विध्वंस की खबरें पाठकों तक सबसे पहले पहुंचाने के लिए उस दिन सांध्य स्वदेश ही निकाल दिया। स्वदेश के प्रधान संपादक के पद से सेवानिवृत्त होकर वे 11 फरवरी 2014 से मध्यप्रदेश शासन के सूचना आयुक्त की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहे हैं। 
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"जयकिशन जी उस परंपरा के पत्रकार हैं, जिन्होंने पत्रकारिता, राष्ट्र और समाजोत्थान के लिए सर्वस्व त्याग दिया। हिन्दी पत्रकारिता की उन्होंने बहुत सेवा की है। युवा पीढ़ी के लिए वे आदर्श पत्रकार और प्रेरणास्रोत हैं।"
- भुवनेश तोमर, वरिष्ठ पत्रकार
-  जनसंचार के सरोकारों पर केन्द्रित त्रैमासिक पत्रिका "मीडिया विमर्श" के विशेषांक "हिंदी मीडिया के हीरो" में प्रकाशित आलेख

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति ..

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (02-11-2014) को "प्रेम और समर्पण - मोदी के बदले नवाज" (चर्चा मंच-1785) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
    आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 3 . 11 . 2014 दिन सोमवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !

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