शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

कुछ तो इज्जत कर लो देश की...

भा रतीय संसद में बैठे कई लोग वाकई राजनीति के लायक नहीं हैं। उनकी हरकतें, बयानबाजी कुछ जाहिल किस्म की हैं। आचरण तो अशोभनीय है ही। गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा की ओर से संभावित प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के विरोध में कुछ सांसद और नेता बिना-विचारे किसी भी हद तक गिर रहे हैं, यह देखकर आश्चर्य है और कहीं न कहीं भारतीय जनमानस में आक्रोश भी। मोदी को अमरीका का वीजा नहीं देने की अपील करने वाली दो चिट्ठियां हाल ही में सामने आई हैं। इनके कारण भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जबर्दस्त थू-थू हुई है। क्षुब्ध भारतीय नेताओं के कारण देश का स्वाभिमान गर्त में मिला जा रहा है। चिट्ठी में अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से अपील की गई है कि नरेन्द्र मोदी गुजरात दंगों के दोष से मुक्त नहीं हुए हैं। इसलिए उनको अमरीका वीजा नहीं दे, वर्तमान में मोदी के प्रति जो नीति है उसे बनाए रखा जाए। इस चिट्ठी पर १२ राजनीतिक पार्टियों के ६५ सांसदों के हस्ताक्षर हैं। इनमें कम्युनिस्ट पार्टियां, क्षेत्रीय दल और कांग्रेस तक के सांसदों के नाम शामिल हैं। इस पत्र के सूत्रधार हैं निर्दलीय सांसद मोहम्मद अदीब। अदीब की दिमाग की ही उपज थी यह डर्टी पॉलिटिक्स। हालांकि विवाद सामने आते ही ज्यादातर सांसदों ने ऐसी किसी चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने से इनकार किया है। लेकिन अदीब इस बात पर टिके हैं कि सभी हस्ताक्षर असली हैं, लोग अब क्यूं पलट रहे हैं, यह समझ से परे है। यहां गौर करने लायक बात यह भी है कि हस्ताक्षर नहीं करने का दावा करने वाले किसी भी सांसद ने अब तक अदीब पर फर्जीवाड़े का केस दर्ज नहीं कराया है। बहरहाल हस्ताक्षर असली हों या फर्जी भारतीय राजनीति में अपरोक्ष रूप से अमरीकी हस्तक्षेप की मांग करके सांसद/सांसदों ने भारत की नाक तो कटा ही दी है। 
भारत की जनता घरेलू मामले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने के दर्द को अच्छे से समझती है। जवाहरलाल नेहरू की गलती की सजा जम्मू-कश्मीर विवाद के रूप में हम आज तक भुगत रहे हैं। यदि नेहरू ने जम्मू-कश्मीर मामले को अंतरराष्ट्रीय पटल पर नहीं रखा होता तो संभवत: आज जम्मू-कश्मीर में कोई समस्या नहीं होती। खैर, नरेन्द्र मोदी का मसला जम्मू-कश्मीर से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है और न ही उसके समकक्ष  है। यह एकदम अलग मसला है, इसलिए दोनों की तुलना यहां नहीं करते हैं। लेकिन घरेलू मसलों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाना, भारतीय राजनीति में अमरीकी हस्तक्षेप की मांग करना पॉलिटिकली गलत है। नरेन्द्र मोदी को वीजा जारी करना या नहीं करना अमरीका का अंदरूनी मसला है। इसमें हमारे राजनेता को नहीं पडऩा चाहिए। हां, भारत सरकार को जरूर इस पर आपत्ति लेनी चाहिए कि अमरीका उसके एक लोकप्रिय नेता को वीजा क्यों नहीं जारी कर रहा? लेकिन जैसा कि स्पष्ट है कि यूपीए की सरकार में इतने साहसी लीडर शामिल नहीं हैं जो अपने सबसे करीबी विरोधी के पक्ष में कोई भी बात करें, चाहे बात देश के सम्मान की हो। अमरीका को मुंहतोड़ जवाब देने की हिम्मत तो हमारे नेताओं में तब भी नहीं होती जब अमरीकी एयरपोर्ट पर इन भारतीय राजपुरुषों के कपड़े उतरवा लिए जाते हैं।  
नरेन्द्र मोदी के वीजा के लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की ओर से अमरीका जाकर अपील करना भी उचित नहीं है। हालांकि राजनाथ सिंह का कहना है कि वहां के कुछ लोगों ने ही उनके सामने नरेन्द्र मोदी के अमरीकी वीजा का मसला रखा था, जिस पर उन्होंने यह कहा था कि वे इस संबंध में अमरीकी सरकार से बात करेंगे। उन्होंने ओबामा के समक्ष किसी भी रूप में नरेन्द्र मोदी के वीजा मामले को नहीं उठाया है। खैर, विवाद होने के बाद किसी भी मामले से पल्ला झाड़ लेना भारतीय राजनेताओं के व्यवहार में शामिल हो गया है। 
माकपा के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी, भाकपा के एमपी अच्युतन और डीएमके के रामलिंगम ने चिट्ठी को फर्जी बताया है। सीताराम येचुरी ने तो इसे कट-पेस्ट का मामला बताया है। उनका कहना है कि उन्होंने कभी इस तरह के पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इस तरह के पत्र पर हस्ताक्षर करना उनके चरित्र और सिद्धांत के विपरीत है। उनका स्पष्ट मत है कि घरेलू मामलों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाना ही सरासर गलत है। उधर, चिट्ठी भेजने वाले सांसद मोहम्मद अदीब का दावा है कि पत्र पर सीताराम येचुरी के हस्ताक्षर असली हैं। अब वे मुकर रहे हैं तो मुझे ऐसे लोगों पर शर्म आती है। अदीब साहब, शर्म तो देश की आवाम को तुम पर और तुम जैसे नेताओं पर आ रही है। तुम्हारी ओछी राजनीति से देश शर्मिन्दा है, आश्चर्यचकित नहीं, क्योंकि देश अब तो आए दिन ऐसी डर्टी पॉलिटिक्स से दो-चार हो रहा है। आश्चर्यचकित तो अंतरराष्ट्रीय जगत है, जो भारत को उभरते हुए शक्ति के एक ध्रुव के रूप में देखता है। स्वाभिमानी होने की जगह भारतीय नेताओं का यह पिलपिला रूप देखकर अमरीका का प्रतिष्ठित समाचार-पत्र भी आश्चर्य से लिखता है कि किसी देश के अंदरूनी मामलों में अमरीकी राष्ट्रपति से दखल देने की मांग करना अजीब है। भारतीय सांसदों की ओर से ऐसी मांग आना तो अकल्पनीय है। बहरहाल, हमारे देश के नेताओं को इतना शऊर ही नहीं है कि वे अपनी ओछी हरकतों से देश का कितना नुकसान कराते हैं। पत्र पर किसके हस्ताक्षर असली हैं और किसके फर्जी, यह तो मोहम्मद अदीब जानते होंगे या फिर जिनके हस्ताक्षर हैं वे नेतागण। लेकिन, मामला देश के स्वाभिमान से जुड़ा है इसलिए भारतीय संसद को इस मामले पर संज्ञान लेना चाहिए। पत्र पर हस्ताक्षर फर्जी हैं तो मोहम्मद अदीब के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। यदि हस्ताक्षर असली हैं तो ६५ सांसदों से जवाब तलब किया जाए कि इस मसले को भारतीय स्तर पर उठाने की जगह अमरीकी राष्ट्रपति के दरवाजे पर क्यों ले जाया गया? वैसे ऐसे नेताओं को नसीहत तो मिलनी ही चाहिए ताकि ये अपनी न सही देश की तो कुछ तो इज्जत कर सकें। 

5 टिप्‍पणियां:

  1. अब्बा ओ बामा सुनो, डब्बा होता गोल |
    रोजी रोटी पर बनी, खुलती रविकर पोल |


    खुलती रविकर पोल, पोल चौदह में होना |
    समझो अपना रोल, धूर्त मोदी का रोना |


    चूँ चूँ का अफ़सोस, भेज ना सका मुरब्बा |
    रहा आज ख़त भेज, रोक मोदी को अब्बा ||

    जवाब देंहटाएं
  2. देश? कैसा देश?? किसका देश??? यहाँ तो अपनी रोटियाँ सिक जाएं फिर देश स्वाभिमान नियम ईमान वफादारी सब जाए भाड में ..।

    जवाब देंहटाएं
  3. राजनेता मोदी विरोध में निम्नस्तर तक गिरते जा रहें है !!

    जवाब देंहटाएं
  4. पूरी राजनीति ही गन्दी हो चुकी है

    जवाब देंहटाएं
  5. मोदी के खिलाफ़ कुछ भी मौका मिल जाये, वही आजकी (सफ़ल + सेक्यूलर) पालिटिक्स है।
    जहाँ तक राजपुरुषों के कपड़े उतारने वाली बात है, मुझे इसमें कुछ अजीब नहीं लगता। अपने देश की सुरक्षा के लिये अगर उन्होंने ऐसे नियम बना रखे हैं और सख्ती से उनका पालन करते हैं तो ये अच्छी बात ही है फ़िर चाहे कोई आम नागरिक हो या राजनयिक या फ़िर कोई अभिनेता। जिन्हें दिक्कत है, वो वहाँ न जायें। बल्कि हमारे यहाँ भी चाहिये कि जहाँ देश और जनता की सुरक्षा का प्रश्न आये वहाँ कठोर नियम बनायें और उनका पालन करें।
    ऐसे ही, मोदी का विरोध करने वाले तो गलत हैं ही लेकिन अमेरिका जाने के लिये मोदी को भी बहुत लालायित नहीं होना चाहिये। जहाँ कोई ऐसा समाचार आता है कि फ़लां देश मोदी को वहाँ आने का न्यौता दे रहा है तो मोदी समर्थक इस बात को लेकर नाचने कूदने लगते हैं। खुद को याचक के रूप में प्रस्तुत करने में हम भारतीयों को भी बहुत मजा आता है। दोनों स्थितियों में लोगों का व्यवहार अजीब सा लगता है।

    जवाब देंहटाएं

पसंद करें, टिप्पणी करें और अपने मित्रों से साझा करें...
Plz Like, Comment and Share