बुधवार, 29 अगस्त 2012

कठपुतलियों के हाथ में है देश

लोकेन्द्र सिंह/भारतवाणी
 दे श का वर्तमान परिदृश्य देखकर लगता नहीं हम आजाद हैं। आजादी के ६६वें सालगिरह पर मनाई पार्टी का भी खुमार नहीं चढ़ा। देश में लूट मची है। सरकार के मंत्री भ्रष्टाचार करके भी साफ मुकर रहे हैं। जबकि सब बेईमानी की कीचड़ में सिर तक सने हैं। अब तो कथित ईमानदार प्रधानमंत्री का झक सफेद कुर्ता भी कोयले से काला हो गया है। निर्लज्जता देखिए यूपीए के मंत्रियों की- वे कैग को ही गरिया रहे हैं, झुठला रहे हैं। विपक्ष और जनता सवाल उठा रही है लेकिन यूपीए-२ सरकार कंबल ओढ़ कर घी पी रही है। इतना ही नहीं एक और गंभीर दृश्य है देश के बुरे हाल का। देश बंधक है वंशवाद की राजनीति का। देश को कठपुतलियां चला रहीं है। जनता की पीड़ा पर प्रधानमंत्री चुप है। राष्ट्रपति सरकार की बोली बोल रहे हैं। गजब देखिए संसद का संचालन भी अध्यक्ष के विवेक से नहीं वरन किसी के इशारे से हो रहा है। इशारे कहां से हो रहे हैं? कौन कर रहा है? किसे नहीं पता! सबको पता है।
    भारतीय संसद के इतिहास की पुस्तक में काले पन्नों पर दर्ज होने वाला प्रकरण है राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन और केन्द्रीय मंत्री राजीव शुक्ला की कानाफूसी। वह तो शुक्र है कांग्रेस और यूपीए सुप्रीमो ने सबके दिमाग अपने पास गिरवी रख रखे हैं। वरना राजीव शुक्ला उपसभापति के कान में फुसफुसाने से पहले माइक बंद करना नहीं भूलते। उपसभापति के माइक ने राज्यसभा में उपस्थित सांसदों और राज्यसभा टीवी ने देश की आवाम को दिखा-सुना दिया कि राजीव शुक्ला ने पीजे कुरियन से कहा - कोयला घोटाले पर हंगामा थमेगा नहीं, आप कार्रवाई दिनभर के लिए स्थगित कर देना। इस पर कुरियन बोलते हैं - जी अच्छा। इसके बाद उपसभापति ने एकाएक सदन की कार्रवाई को स्थगित कर दिया। जबकि सदन का संचालन निष्पक्ष रूप से किया जाना चाहिए था। सभापति किसी न किसी पार्टी से जरूर होता है लेकिन वह पार्टी लाइन से ऊपर होता है। उस समय वह एक तरह से पंच परमेश्वर की कुर्सी पर बैठा होता है। पंच तो सबका होता है और किसी का नहीं। सदन में सभापति सर्वोच्च होता है। भारतीय संसदीय व्यवस्था में सभापति की महती भूमिका है। उनकी जिम्मेदारी है कि सदन का सफलता से संचालन हो ताकि जनता के करोड़ों रुपए हंगामे की भेंट न चढ़े। सदन की कार्रवाई से देशहित में कुछ न कुछ निकल कर आए। सदन का संचालन सभापति को स्वविवेक के आधार पर करना होता है किसी की इच्छानुसार नहीं। खैर, इस कानाफूसी काण्ड से पीजे कुरियन 'कु'नजीर बन गए। लोग वर्षों-बरस याद करेंगे कि एक थे कुरियन जो खाली दिमाग थे। सदन का संचालन सरकार के मंत्री के इशारे पर करते थे। एक क्षण रुकिए, क्योंकि यहां साफ कर दूं कि पीजे कुरियन को यह ज्ञान भी मिस्टर शुक्ला ने स्वविवेक से नहीं दिया। बल्कि इसके पीछे सौ फीसदी कांग्रेस सुप्रीमो के निर्देश होंगे।
    इधर, देश के प्रधानमंत्री की नाक के नीचे लगातार घोटाले हो रहे हैं और अब भी वे ईमानदारी का लबादा ओढ़े घूम रहे हैं। बोल तो उतना ही रहे हैं जितना उनको निर्देश है। देश में शायद ही कभी इतना लाचार, बेबस और कमजोर प्रधानमंत्री रहा होगा। भविष्य में भी शायद ही ऐसा कोई आए। बड़ी लज्जाजनक स्थिति है कि अब भारत के प्रधानमंत्री चुटकुलों का केन्द्रीय पात्र हो गए हैं। वर्ष २००४ में सेन्ट्रल हॉल से लेकर अब तक प्रधानमंत्री ने इतनी बेइज्जती सहन की है कि उनकी सहनशीलता का लोहा मानना पड़ेगा। असली लौहपुरुष हैं हमारे प्रधानमंत्री। सबको याद होगा सेन्ट्रल हॉल का नाटक। सोनिया गांधी 'त्याग' की मूर्ति बनी थी। सारे कांग्रेसी टसुए बहा रहे थे, साष्टांग दंडवत थे। वे सोनिया के अलावा किसी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना नहीं चाहते थे। मनमोहन सिंह के पक्ष में एक भी संसद सदस्य नहीं था। मैडम ने पूरा होमवर्क करके प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह का नाम प्रस्तावित किया था। उन्हें मालूम था कि 'मिस्टर क्लीन' उनके आदेशों का अक्षरश: पालन करेंगे। साथ ही भ्रष्टाचार में ढाल का भी काम करेंगे। प्रधानमंत्री ने अपनी उपयोगिता समय-समय पर प्रदर्शित की। यूपीए-२ में हजारों करोड़ रुपए की लूट कथित ईमानदार पीएम की छवि के पीछे होने दी। मनमोहन सिंह सशक्त प्रधानमंत्री नहीं है इस बात का वे खुद प्रमाण देते हैं। जनता और विपक्ष ने जब भी प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांगा, मनमोहन चुप्पी साध गए। कांग्रेस एकजुट होकर उनके बचाव में आ जाते हैं। माफ कीजिएगा, उनके नहीं ये सब अपने बचाव में एकजुट होते हैं क्योंकि इन्हें उनकी आड़ लेकर देश को और लूटना था। इसमें एक गजब की बात देखिए - जनता और विपक्ष के मांगने पर इस्तीफा नहीं देने वाले प्रधानमंत्री युवराज के लिए कुर्सी छोडऩे को दिन-रात तैयार रहते हैं। सार्वजनिक मंचों से इस बात को कह भी चुके हैं। जलालत झेलने को तैयार लेकिन चलेंगे रिमोट से ही, ऐसे हैं हमारे पीएम ऑफ इंडिया। यही हाल गृहमंत्री और वित्तमंत्री सहित अन्य के हैं।
    राष्ट्रपति देश का प्रथम और सर्वोच्च पद है। पद की गरिमा बहुत है। लेकिन, कांग्रेस ने अपने शासन काल में जिस तरह राज्यपाल व्यवस्था को तार-तार किया है, ठीक उसी तरह राष्ट्रपति पद की साख को भी नुकसान पहुंचाया है। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल का चयन हो या फिर वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का। नि:संदेह प्रणव मुखर्जी एक कद्दावर और साफ छवि के नेता हैं। देश के सर्वोच्च पद के दावेदार भी। उनकी लोक ताकत को देखते ही कांग्रेस सुप्रीमो ने उन्हें कभी प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया। हालांकि उनका भी मैडम ने विपरीत परिस्थितियों में जमकर उपयोग किया। प्रणव बाबू भी अनजाने में ही सही गांधी-नेहरू वंश की गोद में खेलते रहे। युवराज के सिंहासनरूढ़ होने का रास्ता साफ हो सके इसके लिए एक सुनियोजित षड्यंत्र रचा गया। यूपीए-२ के सशक्त नेता को उपकृत करके पंगु करने का षड्यंत्र। प्रणव बाबू को देश का प्रथम नागरिक बनवा दिया गया। हांलाकि इसमें कांग्रेस सुप्रीमों के पसीने जरूर छूट गए। सरकार ने पैकेज नहीं बांटे होते तो सहयोगियों ने सुप्रीमो का खेल बिगाडऩे का पूरा इंतजाम कर रखा था। सुप्रीमो के लिए प्रणव बाबू को राष्ट्रपति भवन पहुंचाना जरूरी था इसलिए पैकेज के दम पर थोक में वोट खरीदे गए। नतीजा ६६वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रपति भी सरकार के मंत्रियों की बोली बोलते नजर आए। यानी राष्ट्रपति के भेष में यूपीए का एक मंत्री। राष्ट्रपति ने कहा कि जन आंदोलनों से लोकतंत्र को खतरा है। सब जानते हैं कि खतरा किसको है, लोकतंत्र को, कांग्रेसनीत यूपीए सरकार को, कांग्रेस को या फिर वंशवाद की राजनीति को। इतिहास तो गवाही देता है कि जन आंदोलनों ने लोकतंत्र को मजबूत किया है, कमजोर नहीं। जन आंदोलनों ही देश की आजादी की राह सुगम की थी। हाल ही में विश्व पटल पर अन्य देशों में भी जन आंदोलनों से लोकतंत्र की बहाली हुई है। फिर क्यों देश के राष्ट्रपति जनता का मनोबल गिरा रहे थे। दरअसल, प्रणव बाबू की आवाज में कांग्रेस की मनस्थिति थी। उनका यह भाषण कांग्रेस सुप्रीमो के प्रति धन्यवाद था। 
    भारत की वर्तमान सरकार की आस्था जनता में न होकर किसी विशेष परिवार में हैं। ये सरकार तानाशाह भी है। घोटाले दर घोटाले उजागर हो रहे हैं। महंगाई बढ़ रही है। विकास दर घट रही है। देश में कानून व्यवस्था नाम की चीज नहीं। देश में अलगाव की आग सुलग रही है। अवैध घुसपैठियों की भरमार हो गई है। बांग्लादेशी घुसपैठियों के पक्षधर गृहयुद्ध जैसी स्थितियां बना रहे हैं। लेकिन, सरकार की चमड़ी की मोटाई और चिकनाहट बढ़ रही है। वह हर बार अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़कर आवाम की आंख में धूल झौंकने का काम कर रही है। जनता ने बड़ी उम्मीद से अपने नेता को संसद में चुनकर भेजा था। ताकि देश के सर्वोच्च सदन में नेता उनकी बात रख सकेगा। लेकिन, सब उम्मीदें ध्वस्त। वह तो दिल्ली में १० जनपथ की चाकरी करता दिख रहा है। कांग्रेस सुप्रीमों की अंगुलियों पर ता-ता थैय्या कर रहा है। जनता ने भी अब मन बना लिया है- २०१४ में देश कठपुतलियों को नहीं सौंपना।

13 टिप्‍पणियां:

  1. आस्ता विशेष परिवार से अभी ही नहीं शुरू से रही है कांग्रेस वालों की ... और इसबात का नेहरू परिवार को पता है ... इसलिए जो उनकी मर्जी है वो करेंगे ...

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  2. बेहद सटीक और सार गर्भित लेख,लेकिन दुर्भाग्य ये है कि कांग्रेस लगातार दो बार से सरकार में है!दोनों ही बार जनता ने उसे नहीं चुना,पर जनता द्वारा चुने गए सांसदों ने अपना खर्चा वसूलने और अपनी औकात को दिखाने के लिए कांग्रेस का साथ दिया है! कभी वाम दल,कभी मुलायम और कभी ममता.... सभी अपने हित साधते दिखे!

    कुँवर जी,

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    1. कुँवर जी, जन जागरण जरुरी है... आम आदमी वोट डालने ही नहीं जाता... पार्टी के अंधभक्त ही वोट डालते हैं या गरीबों के वोट धमका कर और उन्हें लालच दिखा कर बटोर लेते हैं... हर आदमी अपने मताधिकार का उपयोग करे तो संभवत अच्छे लोग चुन कर आयेंगे

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  3. आपकी धार दिन प्रतिदिन पैनी होती जा रही है.. सही कहा आपने और अच्छा विश्लेषण है.. दरअसल व्यवस्था जब निरंकुश हो जाए तो जनता कठपुतली बन जाती है.. इसलिए वे नहीं, हम है वास्तविक कठपुतली.. नाचो वरना...!!

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    1. आदरणीय वर्मा जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद... सब आपकी संगत का असर है

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  4. सचमुच ही विश्वास खत्म करदिया है आज के राजनैतिक वारावरण ने । खेद तो तब और बढ जाता है जब सच बोलने वाला लोकतन्त्र का चौथा स्तंभ अपना दायित्त्व ठीक से नही निभा रहा । वे बेईमान व भ्रष्ट नेताओं की खबर लेने से अधिक निहायत ही गैरजरूरी मुद्दों पर राजनीति करते रहते हैं । भाई लोकेन्द्र ,आपकी आवाज एक राह खोलती है ।

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    1. दीदी तारीफ़ के लिए शुक्रिया,
      भ्रष्टाचार की चपेट में सब आ गए हैं क्या पहला खम्बा और क्या चौथा खम्बा.. यही कारन तो है की आज अराजक स्थितियां हैं.. ये जनता को इतना बेवकूफ समझते हैं की कह रहे हैं कि घोटाले हो ही नहीं रहे... भ्रष्टाचार है ही नहीं... सब बढ़िया चल रहा है.. जनता तो यूँ ही चिल्ला रही है

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  5. दिलबाग जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद

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  6. जब भी इस सत्ता पर कोई सवाल उठाने की कोशिश करता है, सूत्रधार की उंगलियाँ हिलती है और सी.बी.आई., प्रवर्तन निदेशालय और ऐसी ही कई और मशीनें सक्रीय हो जाते हैं और फिर से एक बार सब कठपुतलियों की तरह नाचने लगते हैं| सबहीं नचावत राम गोंसाईं, थोड़ा फेरबदल करना होगा इसमें तो सम सामयिक हो जाएगा, 'सबहीं नचावत मादाम गोसाईं'|

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  7. इटली से इम्पोर्टेड मदारन जो पास में है!

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  8. ४८ लाख करोड़ का नया घोटाला ! मनमोहन सरकार ने देश को पूरा ही बेच डाला ! अमेरिका ने पहले हल्दी नीम पेटेंट करायी , फिर राम-सेतु को 'एडम्स ब्रिज' कहकर उसे अपनी खोज बता दिया ! अब उसके नीचे दबे करोड़ों के थोरियम को डकार चुका है ! कांग्रेस हटाओ , देश बचाओ , नहीं तो सोते रह जाओ !

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  9. भारत के इतिहास में यह समय घोटाला काल के रूप में जाना जायेगा। जिनका दाँव चल गया वे मज़े कर रहे हैं, जिनका फिसल गया वे कुनमुना रहे हैं ... और जनता ... खंडवा के ग्रामवासियों की तरह गर्दन तक पानी में भूखी प्यासी शांत खड़ी है, एक और अवतार की प्रतीक्षा में ...

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