रविवार, 4 मार्च 2012

हे! उज्ज्वला, क्यों दामन मैला कर रही है?

 हा ल ही में एक समाचार पढ़ा-मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में कुछ महिलाएं जुआ खेलते पकड़ी गईं। उनके पास से लाखों रुपए और प्लास्टिक के ताश बरामद किए गए हैं। मन ने मन में ही उद्घोष किया-हे! उज्ज्वला, पतित पुरुष की होड़ में तू कितना और गर्त में गिरेगी। उसके रचे व्यूह में फंसकर तेरे धवल वस्त्रों पर पहले ही बहुत कीचड़ लग गया है। उसने तुझे बाजारवाद और बुद्धिवाद में ऐसा फंसाया है कि तेरी पवित्रता को वह सरे बाजार बेच रहा है तेरी ही सहमति से। तुझे इसमें भी नारी स्वतंत्रता दिखती है। हां, तथाकथित नारी स्वतंत्रता के नाम पर ही यह सब किया जा रहा है। तुझे बहकाया जा रहा है। दरअसल, कुछ दंभी पुरुष स्त्री की उच्च सत्ता को स्वीकार नहीं करते। उस प्रवृत्ति के पुरुष सदैव से उसको अपने जैसा पतित बनाने के लिए षड्यंत्र करते आ रहे हैं। उनकी संतति आज भी इस कर्म में संलग्न है। दंभी पुरुष ने एक अरसा पहले उज्ज्वल नारी को कीचड़ में धकेलने के लिए स्त्री स्वतंत्रता और सम-अधिकार नाम का अस्त्र विकसित किया। नारी स्वतंत्रता अस्त्र का दुरुपयोग वह जमकर कर रहा है। इसका प्रतिसाद भी मिल रहा है।
    पतित पुरुष (सभी नहीं) और उसके फेर में फंसी दिग्भ्रमित नारी ने स्त्री स्वतंत्रता के नाम पर उज्ज्वला के मन में कचरा भी भर दिया। नारी से कहा गया कि मनुष्य जितना पतित कर्म कर सकता है तुम भी कर सकती हो। पुरुष तौलिया लपेटकर सड़क पर घूम सकता है तो स्त्री क्यों नहीं? पुरुष शराब पीकर नाली में पड़ा रह सकता है तो स्त्री क्यों नहीं? पुरुष स्त्रियों को छल सकता है उन्हें क्षणिक दैहिक सुख के लिए इस्तेमाल कर सकता है तो स्त्री क्यों नहीं? पुरुष गाली-गलौज कर सकता है तो स्त्री क्यों नहीं? इन सवालों के जवाब कुछ नहीं है। क्योंकि ये स्त्री स्वतंत्रता से जुड़े सवाल नहीं। ये तो उसकी गुलामी के लिए बुने गए जाल के तार हैं। दंभी और कुंठित पुरुष तो चाहता ही था कि वह स्त्री की मांसल देह को देख सके। इधर, कथित स्वतंत्रता के नाम पर स्त्री देह दिखाऊ वस्त्र पहनकर उसकी मंशा पूरी कर रही है। पुरुष तो वर्षों से चाहता था कि स्त्री होश खो दे और उसके बाहुपाश में आ गिरे। ताकि वह उससे जैसे चाहे वैसे खेल सके। स्त्री आज हर तरह का नशा कर रही है। होश गंवाकर उसने पुरुष के धूर्त पुरुष के साथ जो किया, उसके तमाम एमएमएस आज बाजार में हैं। स्त्री जब तक श्रेष्ठ थी या है लंपट पुरुष की पहुंच से बहुत दूर थी या है। हालात बदल गए। पुरुषों का उपभोग करने के नाम पर खुद ही उपभोग हो रही है।
    भारत एक ऐसा देश है जहां नारी को श्रेष्ठ सत्ता माना गया है। वंदनीय, पूजनीय माना गया। स्त्री पर कई तरह की बंदिशें लगाई जाती रही हैं यह एक सफेद झूठ है। जो स्त्री की आबरू लूटने बैठे समाज के द्वारा लगातार बोला गया। इतनी बार बोला गया कि वह सच के जैसा लगने लगा। लेकिन, यह सच नहीं है। सच तो यह है कि श्रेष्ठता के साथ ही उसे सम्मान के साथ जीने के पूरी आजादी थी और है। पाबंदी इतनी-सी थी कि वह कुछ मैले कामों से दूर रहे। इसे पाबंदी कहना ठीक नहीं। इसे तो अपेक्षा कह सकते हैं, भरोसा भी कह सकते हैं। ऐसा भी नहीं है कि यह अपेक्षा और भरोसा सिर्फ स्त्री से ही है, पुरुष को भी बुराइयों से उतना ही दूर रहना चाहिए। चूंकि स्त्री को ईश्वर ने विशिष्ट बनाया है। उसे कुछ विशेष ताकतें दीं। ईश्वर पवित्र लोगों को सृष्टि के संचालन की शक्तियां प्रदान करता है। स्त्री की कोख से जीवन का अंकुर फूटता है। गंदली जमीन पर विषैली पौध ही उगेगी। इससे समाज दूषित होगा। समाज स्वच्छ रहे। अच्छाई बढ़े ताकि बुराई को हराया जा सके। इसके लिए अच्छी पौध की जरूरत है। अच्छी पौध साफ और पवित्र जमीन पर उगेगी। इसलिए स्त्री को अपनी जमीन साफ रखने की जरूरत है। और फिर स्वच्छता में जो आनंद है वह गंदगी में कहां। तो फिर क्यों वह आंख बंद किए अंधेरे में दौड़े जा रही है। क्यों नहीं वह समझती की अच्छे समाज के निर्माण की उसकी भूमिका अहम है, पुरुष से भी अधिक जिम्मेदारी उसके ऊपर है। पुरुष आवारा है। ऐसे में स्त्री भी उच्छृंखल हो जाएगी तो कैसे समाज चलेगा।
    मायावी पुरुष ने तुझे फंसाने के लिए कैसे-कैसे खेल रचे हैं। तू देख क्यों नहीं रही उज्ज्वला। उसने बाजारवाद का ऐसा मोहपाश फेंका है कि तू उसमें उलझ गई है। वह फैशन के नाम पर तुझसे नग्न परेड कराता है। कला के नाम पर तेरा जिस्म दिखाता है। सीमेंट का ही विज्ञापन क्यों न हो तेरा शरीर बेचकर पैसा बनता है। कथित आजादी के नाम पर तुझसे स्लट वॉक कराता है। देवी, मां, बहन, भाभी, पत्नी तेरी ये सारी पहचान छीनकर उसने तुझे सेक्स सिंबल बनाकर रख दिया है। तू पता नहीं किस आजादी और सम-अधिकार के भ्रमजाल में फंसकर यह सब किए जा रही है। खुद को खोए जा रही है। याद रखना पतित के पास समाज ताकत नहीं रहने देता। जब तेरे पास सत्य की ताकत नहीं होगी तो अधम पुरुष तुझसे जो उसका जी चाहेगा कराएगा। तुझे करना होगा तब चाहे तेरी मर्जी हो या न हो। तू अभी जिसे स्वतंत्रता मान रही है वह तब धरी रह जाएगी।
    हे! उज्ज्वला, धवला अब भी समय है, सम्भल जा। रोक ले अपने कदमों को जो पुरुष के इशारे पर दलदल की ओर बढ़ रहे हैं। अब भी तू अपनी देवीमय गरिमा को बनाए रख सकती है। अब भी तू पवित्रता और श्रेष्ठता के मामले में पुरुष को चुनौती दे सकती है। तुम नहीं संभली तो वह दिन दूर नहीं जब तुम कीचड़ में सनी होगी और पुरुष तुम पर हंस रहा होगा।
    आखिर में स्पष्ट कर देता हूं कि मैं इस बात का पक्ष कतई नहीं ले रहा कि पुरुष के लिए कोई मर्यादा नहीं, कोई बंधन नहीं। उच्छृंखल व्यवहार उसका भी बर्दाश्त नहीं। वह भी समाज के संचालन का अभिन्न हिस्सा है। उसे भी उन तमाम बुराइयों से दूर रहना चाहिए जो उसके पतन का कारण बनती हैं। जिस तरह समाज में व्यसन में लिप्त स्त्री का सम्मान नहीं है उसी तरह उदण्ड पुरुष को भी समाज हिकारत की नजरों से देखता है। उसकी आजादी वहीं तक है जहां तक दूसरों को परेशानी न हो। एक चेतावनी उसके लिए भी है। वह भी भौतिक चकाचौंध में अपनी जिम्मेदारी भूल रहा है।
    अपनी बात : एक व्यवहारिक कहावत है कि :-
     यदि एक लड़का शिक्षित होता है तो एक व्यक्ति शिक्षित होता है।
    जबकि एक लड़की शिक्षित होती है तो एक पीढ़ी शिक्षित होती है।
यह भी व्यवहारिक सत्य है :-
यदि एक लड़का आवारा होता है तो एक व्यक्ति आवारा होता है।
जबकि एक लड़की आवारा होती है तो एक पीढ़ी आवारा होती है।
स्मिता सिल्क और विद्या बालन। स्मिता शिल्क के जीवन पर आधारित फिल्म डर्टी फिक्चर भी यही संदेश देती है कि अमर्यादित व्यवहार से तात्कालिक प्रसिद्धी तो पाई जा सकती है लेकिन अनंतसुख नहीं।

8 टिप्‍पणियां:

  1. अंग्रेज़ी में एक कथन सुना था, "कोई भी व्यक्ति टापू नहीं होता।" भारतीय समाज में सतत हो रहे पतन से स्त्रियाँ कैसे अछूती रह सकेंगी। पंजाब के आतंकवाद के चरम पर एक पुलिस अधिकारी ने कहा था कि आतंकवाद को समाप्त करना है तो उसे अनअफ़ोर्डेबल बनाना पड़ेगा। इसी प्रकार यहाँ अमेरिका में ड्रंकेन ड्राइविंग के लिये प्रशासन का सन्देश है, "आप इसकी कीमत झेल नहीं पायेंगे।" आज के भारत में हम लोगों को कुविचारों और उनके निरूपण द्वारा तरक्की करते देख रहे हैं और इस सब से एक उलटा-आदर्श प्रबल होता जा रहा है। ज़रूरत है भ्रष्टाचार को अनअफ़ोर्डेबल बनाने की - पाप करने की इतनी ऊंची क़ीमत अदा करनी पड़े कि पतित भी पावन बनने की सोचें। हाँ, इतना ध्यान रहे कि सत्ता एकाधिकारी और असहिष्णु तालेबान (और तालेबानी प्रवृत्ति पर किसी एक धर्म का एकाधिकार नहीं है) के हाथ पहुँचना और भी बड़ा पाप होगा।

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  2. सहज किंतु गंभीर, अच्‍छा लगा.

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  3. महिलाओ को पुरुषों के बराबरी का दर्जा मिला है
    इसीलिये हर क्षेत्र में आगे आने की कोशिश कर रही है

    भूले सब सब शिकवे गिले,भूले सभी मलाल
    होली पर हम सब मिले खेले खूब गुलाल,
    खेले खूब गुलाल, रंग की हो बरसातें
    नफरत को बिसराय, प्यार की दे सौगाते,

    NEW POST...फिर से आई होली...

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  4. सच कह है ... अंधी दोड में शामिल होना जरूरी नहीं ...

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  5. यदि एक लड़का आवारा होता है तो एक व्यक्ति आवारा होता है।
    जबकि एक लड़की आवारा होती है तो एक पीढ़ी आवारा होती है।
    बहुत खूब, जाने क्यों लगता है की जल्दी ही पूरी मानव सभ्यता ही आवारा होने जा रही है :)

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  6. जब स्त्रियों को पतन की राह पर देखती हूँ तो आत्मिक क्लेश होता है। ईश्वर ने और समाज ने 'स्त्री' के कन्धों पर अधिक जिम्मेदारी डाली है, क्योंकि उनसे अपेक्षा ज्यादा है। स्त्रियों को चाहिए की वे इन दायित्वों को, अपनी गरिमा और मर्यादा बनाये रखते हुए पूरा करें। स्त्री और पुरुष में बराबरी की होड़ कैसी ? दोनों के अलग अलग दायित्व हैं , उनका वहन निष्ठां के साथ करें तो ही सृष्टि का सौन्दर्य बना रहेगा। स्त्री सृजन करती है और संस्कार देती है , तो पुरुष पर उनकी सुरक्षा का दायित्व होता है।

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  7. स्मिता सिल्क और विद्या बालन। स्मिता शिल्क के जीवन पर आधारित फिल्म डर्टी फिक्चर भी यही संदेश देती है कि अमर्यादित व्यवहार से तात्कालिक प्रसिद्धी तो पाई जा सकती है लेकिन अनंतसुख नहीं।
    .बहुत सार्थक और अर्थ पूर्ण प्रस्तुति .

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