बुधवार, 15 सितंबर 2010

हिन्दी हृदय की भाषा है

''हिन्दी में भाव हृदय की गहराई से निकलते हैं और अंग्रेजी में दिमाग की ऊपरी सतह से।"
इन्ही में एक है कुशल शर्मा..
 १४   सितंबर है, हिन्दी दिवस है। सबने लिखा, खूब लिखा। समर्थन में लिखा। विरोध में लिखा। किसी ने बहुत अच्छा लिखा तो किसी ने औसत लिखा। किसी न किसी तरह हिन्दी को याद किया। एक मैं ही रह गया था। हिन्दी की सेवा में ही उलझा था। फुरसत हुई तो देखा हिन्दी दिवस को अंग्रेजी कलेण्डर के हिसाब से बीते हुए २० मिनट हो चुके हैं, लेकिन एक ऐसी याद जेहन में आ गई कि लिखने को बैचेन हो उठा। व्यक्तिगत अनुभव है हो सकता है उससे सब सहमत न हो। वैसे भी किसी के अनुभव ही क्या, किसी के विचार से सब सहमत हो ऐसा नहीं होता। अगर ऐसा होता तो निश्चित ही आज भारत में हिन्दी का बोलबाला उतना ही होता, जितना आज हिन्दी प्रेमियों और सेवियों ने चाहा है। खैर बात को आगे बढ़ाते हैं। बात कोई आठ-नौ साल पुरानी होगी। मैं दिल्ली और हरियाणा की सीमा पर स्थित साधना स्थली झिंझौली में एक शिविर में प्रशिक्षण ले रहा था। यह शिविर सूर्या फाउंडेशन ने आयोजित किया था। यह संस्था बड़े नेक उद्देश्य के साथ समाजकार्य में लगी है।
.          यहीं मेरी कई लोगों से मित्रता हुई। जिससे मेरी दोस्ती उडीसा, पंजाब, हिमाचल, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, औरंगाबाद और दिल्ली सहित कई राज्यों तक फैल गई। सभी मित्रों से पत्रों के माध्यम से जीवंत संपर्क था। डाकिया मेरी मां से कहता था कि आपका लड़का करता क्या है? भारत के कई राज्यों से इसके पत्र आते रहते हैं। मैं भी एक साथ सौ-दो सौ पोस्टकार्ड खरीद लाता था। स्थानीय पोस्ट ऑफिस के बाबू कभी भी २५-५० से अधिक पोस्टकार्ड देते ही नहीं थे, तो सीधे मुख्य डाकघर से ही खरीदने पड़ते थे। हां तो इन्हीं दोस्तों में से एक अजीज था कुशल शर्मा। पंजाब से है। एकदम मस्तमौला। उसने शिविर के दौरान मुझे भांगड़ा सिखाने का बहुत प्रयत्न किया, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। उसके और मेरे बीच में प्रति सप्ताह दो पत्र तय थे। मेरी अंग्रेजी बहुत कमजोर थी और आज भी वैसी ही लंगड़ी है। उसने एक दफा कहा कि चल आज से हम अंग्रेजी में पत्र लिखा करेंगे जिससे तेरी अंग्रेजी अच्छी हो जाएगी। फिर शुरू हुआ अंग्रेजी पत्राचार। काफी लम्बे समय तक चला। उसके कहे अनुसार मेरी अंग्रेजी में निश्चित तौर पर सुधार हुआ। ठीक-ठीक याद नहीं फिर भी शायद उसका जन्मदिन था। इस अवसर पर मैंने उसे अंग्रेजी मैं पत्र नहीं लिखा, अपने हृदय की भाषा से अपने अंतर्मन के विचारों को अंतर्देशी पर उतारा था। पत्र का जवाब भी हिन्दी में ही आया। वह पत्र आज भी मेरे पास संभाल कर मेरे संदूक में रखा हुआ है। इस वक्त मैं कार्यालय में हूं वरना वह पत्र जरूर प्रकाशित करता। उसमें लिखा था- ''भाई आज से हम हिन्दी में ही पत्र लिखा करेंगे। हिन्दी में भाव हृदय की गहराई से निकलते हैं और अंग्रेजी में दिमाग की ऊपरी सतह से।"

8 टिप्‍पणियां:

  1. भारत की धड़कन राष्ट्र भाषा हिंदी पर एक अच्छी सामग्री क़े लिए हार्दिक बधाई.
    बहुत-बहुत धन्यवाद.

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  2. हिंदी पर एक अच्छी सामग्री क़े लिए बधाई. धन्यवाद.

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  3. बहुत सुन्दर लिखा है आपने! हमें तो अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी पर गर्व है! सिर्फ़ हिंदी भाषा ही नहीं बल्कि भारतीय होने पर हम गर्व महसूस करते हैं! उम्दा पोस्ट! बधाई !

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  4. हिन्दी माथे की बिन्दी है।
    हिन्दी है तो हिन्दुस्तान है।

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  5. लोकेंद्र जी… दिल से दिल का सम्बाद त मौन का सबसे अच्छा होता है जहाँ भासा गौण हो जाता है..लेकिन ई बात त सच है कि कोई भी भासा जो आपका अपना नहीं हो, उसमें प्यार नहीं आ सकता.. दिल से अऊर दिमाग से बतियाने में त फरक होबे करेगा!!

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  6. बहुत सही कहा....मुझे भी यही लगता है...

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  7. क्या बात है। मजा आ गया। भई वाह। क्या कहने। क्या संस्मरण लिख डाला भाई। कमाल का मित्र है वह आपका। अक्सर जब हम किसी दिवस विशेष पर लिखते हैँ तो ज्यादातार उसके इतिहास में पहुंच जाते हैं। आप लिखते तो आप भी खो जाते। हिन्दी दिवस पर नहीं लिखा अच्छा किया। यह ज्यादा अच्छा था। एक बार फिर शानदार लिखने के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें।
    हां आपके मित्र की बात सौ फीसदी सही है। मेरा भी यही मानना है।

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  8. HINDI AAJ BHI HAMARI BHASHA HAIN PAR LOG ISS SE DUR HONE LAGE HAIN?
    news

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